वह साँझ ढलते ही कान चौखट पर टांग दिया करती और सीपी से समंदर का स्वर सुनने को व्याकुल धड़कनों को रोक लिया करती। बलुआ मिट्टी पर हाथ फेरती प्रेम के एहसास को धीरे-धीरे जीती।
हवा के झोंके से हिली साँकल के हल्के स्वर पर उसकी आँखें बोल पड़ती और वह झट से उठकर दूर तक ताकती सुनसान रास्तों को जिन पर सिर्फ़ चाँद-सूरज का ही आना-जाना हुआ करता था।
उसका प्रेम दुनिया के लिए पागलपन और उसके लिए एहसास था जिससे सिर्फ़ और सिर्फ़ वही जीती। घर पर नई रज़ाई और एक गद्दा रखती।
कहती- ”पता नहीं किस बखत उसका आना हो जाए? आख़िर घर पर तो सुख से सोए।”
हवाएँ कहतीं हैं- कारगिल-युद्ध का स्वर सुनाई देता था उसे,वही स्वर होले-होले लील गया। वह मुंडेर पर रोटी रख कौवे के स्वर से हर्षा उठती परंतु आसमान में उड़ते हवाई जहाज़ के स्वर से घबरा जाती। अकेली नहीं रहती खेत पर! पति ने पानी का कुआँ खुदवाकर दिया था। उसी के साथ रहती थी।
कभी कभार भोलेपन से कहती - ”कोई मेरा कुआँ चुरा ले गया तो! ” गाँव उसके लिए शहर था और शहर एक स्वप्न नगरी।
उसकी सहजता ने ही गाँव भर में ढिंढ़ोरा पिटवा दिया कि "ग़रीब घर की लड़की थी। कुछ देखा-भाला था नहीं, पानी का कुआँ देखा; इसी से दिल लगा बैठी।”
उसके घर से कुछ दूरी पर एक सत्य का वृक्ष था , वह सत्य ही बोलता। कहता -” बच्चों को मायके लेकर गई थी, घरवालों ने पीछे से शहीद का दाह-संस्कार कर दिया। रहती भी तो गाँव के बाहर थी कौन आता कहने? साल-छः महीने बाद पता चला तभी से वैताल बनी घूमती थी इसी चारदीवारी में, आने-जाने वालों से एक ही प्रश्न पूछती - " युद्ध कब ख़त्म होगा?”
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
आपकी लिखी रचना सोमवार 5 दिसंबर 2022 को
ReplyDeleteपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
आह मार्मिक रचना
ReplyDeleteमार्मिक!!
ReplyDeleteमार्मिक लघुकथा ।
ReplyDeleteवह साँझ ढलते ही कान चौखट पर टांग देती थी और सीपी से समंदर का स्वर सुनने को व्याकुल धड़कनों को रोक लिया करती थी। बलुआ मिट्टी पर हाथ फेरती प्रेम के एहसास को धीरे-धीरे जीती थी। हवा के झोंके से हिली साँकल के हल्के स्वर पर उसकी आँखें बोल पड़ती थीं और वह झट से उठकर ताकती थी दूर तक सुनसान रास्तों को जिन पर सिर्फ़ चाँद-सूरज का ही आना-जाना हुआ करता था।…बहुत मार्मिक रचना !
ReplyDeleteमार्मिक रचना
ReplyDeleteदर्द का कुंआ प्रतीकों में लिखी गई एक बेहरीत लघुकथा है। इसमें एक फ़ौजी की पत्नी होने का दर्द है जो असहनीय बन पड़ा है।
ReplyDeleteओह!!!
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक सृजन