भोर की वेला में सूरज अपना तेज लिए आँगन में उतरते हुए कह रहा था- "देख! मैं कितना चमक रहा हूँ। बरसाता कच्ची धूप काया की सारी थकान समेटने आया हूँ।"
रेवती कह रही थी- ” दूर हट मरजाणा! सर पै मंडासो न मार।”
तभी उसके दरवाज़े पर दस्तक हुई।
”ताई देख! कौण आया है?” श्यामलाल ने दूर खड़ी एक औरत की ओर इशारा किया।
”क्यों, तेरे बाप ने दूसरा विवाह कर लिया क्या?”रेवती ने बाड़ पर फैली तोरई और घीया की बेल ठीक करते हुए उसने बिन देखे ही कहा।
” कभी तो सीधे मुँह बात कर लिया कर ताई।”श्यामलाल ने झुँझलाते हुए कहा ।
”ठीक है, मुँह मोगरी-सा न बना; बता कौण है?” रेवती ने पलटकर देखते हुए कहा।
”दिखती तो औरत ही है, भीतर क्यों न आई बैरन।” रेवती ने माथे पर हाथ सटाकर कहा।
”कांता! ओह!! म्हारी कांता।यह वही कांता है जो वर्षों पहले रूठकर चली गई थी। देख तो! कितनी काली पड़ गई है म्हारी छोरी। तेरे ख़सम के अनाज कम पड़ गया था के ?” बड़बड़ाते हुए अपनी बेटी की ओर दौड़ी तो ख़ुशी में बढ़ते कदम सहसा रुक गए।
” ठहर कांता! तू ऐसे ना जा सके। सुन बावली! आठ वर्ष की छोरी न बाप कोण्या मिला करें।”
कहते हुए रेवती आवाज़ पर आवाज़ दिए जा रही थी।
"नहीं!नहीं!! और न सह सकूँ अब,मेरा है ही कौण यहाँ?”
आठ साल की बच्ची की ऊँगली पकड़े कांता तेज़ गति से चलती जा रही थी। बेटी रीता माँ!माँ!! पुकारती पाँव पीछे खींच रही थी।
"ठहर! एक बार सुन बावली!!”
रेवती बाँह फैला कांता को जाने से रोक रही थी।
वर्षों पहले गुज़रा समय आज फिर आँखों के सामने कांत को देख पसर गया।
उसकी कानूड़ी कुछ ही दूरी पर उसी बाड़ के पास खड़ी आँसू बहा रही थी।
”माँ तू ठीक कहती थी! म्हारी छोरी न बाप कोन्या मिला!” कहते हुए माँ से लिपट कांता फूट-फुटकर रोने लगी।
गाँव की सबसे होनहार ज़िद्दी,पढ़ी-लिखी लड़की कांता उस समय की पाँचवी पास। दुनिया से टकराने का जुनून,विधवा हो प्रेम विवाह रचाकर निकली थी गाँव से।
”मैं न कहती मरो मास न छोड़े ये भेड़िया, तू तो जीवती निकली।” कहते हुए रेवती बेटी और नातिन की हालत पर फूट-फूट कर रोने लगी थी।
”कितनी उम्र में लेकर भाग गया छोरी ने तेरो ख़सम।” रेवती ने बेटी से सीधा प्रश्न किया।
”पंद्रह-सोलह की ही हुई थी कि हरामी की नज़र पहले से थी।” कांता ने अपनी ओढ़णी से नाक पोंछते हुए कहा।
” पाकेड़ घड़े की तो ठेकरी ही हो याँ करें।” रेवती ने बरामदे में बैठते हुए कहा।
”माँ! मेरी छोरी ऐसी न थी, बहला-फुसला लिया उस हरामी ने।” कांता ने मुँह बनाते हुए कहा।
"छोरी तो म्हारी भी ऐसी न थी उसी हरामी ने फाँस लिया ।” रेवती ने तोरई और घीया को टोकरी से बाहर बरामदे में रखते हुए कहा।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'