”डायन होतीं हैं। हाँ, धरती पर ही होतीं हैं। अब बस उनके बदन से बदबू नहीं आती। बदसूरत चेहरा ख़ूबसूरत हो गया और न ही उनके होठों पर अब लहू लगा होता है। दाँत टूट चुके हैं। देखो! उनके नाख़ुँन घिस गए। तुम्हें पता है, पता है न, बोलो! अरे बोलो न!! तुमने भी देखा है उसे ...?”
वह कमरे से बाहर दौड़ती हुई आई,घबराई हुई थी आँखों में एक तलाश लिए, पास खड़ी संगीता से पूछ बैठी।
न चेहरे पर झुर्रियाँ , न फटे कपड़े: पागल कहना बेमानी होगा। तेज था चेहरे पर, उम्र चालीस-पैंतालीस से ज़्यादा न दिखती थी। दिखने में बहुत ही सुंदर और शालीन थी वह।
”हाँ, होतीं हैं जीजी! हमने कब मना किया, चलो अंदर अब आराम करो। लगन के बाद गुड्डू को हल्दी लगानी है। आपके बिन शगुन कैसे पूरा होगा? चलो-चलो अब आराम करो।”
दुल्हन की माँ उन्हें अंदर कमरे में ले जाती है।
इस वाकया के बाद माहौल में काना-फूसी होनी स्वभाविक थी। सभी की निगाहें उस बंद कमरे की तरफ़ थीं।
”कौन थी ये?”
संगीता ने पास बैठी एक महिला से दबे स्वर में पूछा।
”होने वाली दुल्हन की बूआ-सा हैं। सुना है इनके पति आर्मी में कोई बड़े पद से रिटायर्ड थे और बेटा भी आर्मी में कोई बड़ा ही अधिकारी था।”
महिला ने एक ही सांस में सब उगल दिया।
”नाम क्या था?”
संगीता ने बात काटते हुए कहा।
”नहीं पता! यही सुना बहु ने शादी के चार-पाँच महीनों में दोनों बाप-बेटे की कहानी ख़त्म कर, तलाक लेकर विदेश चली गई। बेटे ने रिवॉल्वर से ख़ुद को शूट कर लिया। पिता बेटे का ग़म सह न सका, कुछ दिनों बाद उसने भी आत्महत्या कर ली।”
महिला ने बड़े ही सहज लहज़े में कहा, कहते हुए साड़ी और गहने ठीक करने में व्यस्त हो गई, अचानक कहा-
”वेटर कॉफ़ी।”
महिला ने कॉफी उठाई और चुस्कियों में डूब गई।
वह बंद दरवाज़ा छोड़ गया मन में एक कसक कि क्या डायन होतीं हैं?
@अनीता सैनी 'दीप्ति'