”ईमेल चैक करते रहना,एहसास करवाता रहूँगा; मैं हूँ।”
इस बार प्रदीप के शब्दों में जोश नहीं, प्रेम था। प्रेम जो सांसों में बहता हुआ, कह रहा हो "बस आख़िरी मिशन... फिर रिज़ाइन लिख दूँगा, अब बस और नहीं होता।"
"मैं हूँ से मतलब …?”
भावातिरेक में तान्या के शब्द लड़खड़ा गए। उसने उसे इतना पढ़ा कि शब्द बिठाना भूल गई, फिर चाहे किताब हो या इंसान; अक़्सर ऐसा होता है तारतम्यता भुला बैठते हैं। अचानक उसे महसूस हुआ शब्दों की लय टूट गई है। मैंने क्या कहा? ठीक कहा ना ? उसने क्या कहा? क्या यही जो मैंने सुना।
”मैं हूँ से मतलब मैं हूँ…।"
हल्के स्वर में प्रदीप ने ये शब्द फिर दोहराये। इस बार स्वर रुँधे हुए थे, नहीं जोश था, नहीं गला रुँधा हुआ था।स्मृतियों की उठती हिलोरों पर सवार तान्या कॉरिडोर में रखी ख़ाली कुर्सी को एक टक ताक रही थी। एक पखवाड़ा बीत गया कोई ईमेल नहीं, बस एक एहसास।
" मैं हूँ।"
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (16-03-2022) को चर्चा मंच "होली की दस्तूर निराला" (चर्चा अंक-4371) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteभावपूर्ण भावाभिव्यक्ति ….अति सुन्दर ॥
ReplyDelete"मैं हूँ" ये एक शब्द जीने की आस भी और डर का अहसास भी।
ReplyDeleteएक देशभक्त वीर की पत्नी की मनोदशा की हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति की है आपने अनीता जी।
मैं हूँ मार्मिक लघुकथा
ReplyDeleteमैं हूँ एक मार्मिक लघुकथा बधाइयाँ।
ReplyDeleteओह! इतना दर्द है, बैचेनी है इस मैं हूँ में सच सिहरन सी उठरही है ।
ReplyDeleteअप्रतिम सृजन, हृदय तक उतरता।
वही अहसास उतार दिया पाठक के हृदय में !
ReplyDeleteभावुक कर दिया
ReplyDeleteबहुत सुंदर
बहुत सुन्दर , मार्मिक , भावुक कर देने वाली लघु कथा, जय श्री राधे।
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी मार्मिक लघुकथा । बधाई अनीता को
ReplyDeleteमैं हूँ यही काफी ह़ोता है परिवार के लिए... साँसे थमी होती हैं सूचना आये तो साँसे चले...
ReplyDeleteउस खौफ और उस दर्द को जो जीता है वह भी बयां नहीं कर पाता...जिन्हें आपने शब्द दिया।
🙏🙏🙏🙏