”आतंकी मूठभेड़ में दो भारतीय जवान शहीद हुए। हमें फ़ख़्र है अपने वीर जवानों पर जिन्होंने मातृभूमि के लिए अपने प्राण न्यौछावर किए। ऐसे वीर योद्धाओं के नाम इतिहास के सुनहरे पन्नों में लिखे जाएँगे साथ ही आनेवाला समय हमेशा उनका क़र्ज़दार रहेगा।”
टी.वी. एंकर की आवाज़ में जोश के साथ-साथ सद्भावना भी थी।
आठ वर्ष की पारुल टकटकी लगाए टी.वी देख रही थी कि अचानक अपनी माँ की तरफ़ देखती है।
”तुम्हें फ़ख़्र करना नहीं आता।”
कहते हुए -
स्नेहवश अपनी माँ के पैरों से लिपट जाती है।
”नहीं! मैं अनपढ़ हूँ ना।”
कहते हुए मेनका अपनी ही साँस गटक जाती है।
” तभी ग़ुस्सा आने पर मुझे और भाई को मारती हो?”
पास ही रखे लकड़ी के मुड्डे पर पारुल बैठ जाती है।
”वो तो मैं... ।”
कहते हुए मेनका के शब्द लड़खड़ा जाते हैं ।
चूल्हा जलाने के लिए लकड़ी तोड़ ही रही थी कि हाथ वहीं रुक जाते हैं और अपनी बेटी की आँखों में देखने लगती है।
”गाँव में सभी ने एक दिन फ़ख़्र किया था ना, तुम उनसे क्यों नहीं सीखती?”
निर्बोध प्रश्नों की झड़ी के साथ पारुल चूल्हे में फूँक देने लगती है।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
लघुकथा के संदेश से मन भीग गया अनीता जी!मर्मस्पर्शी सृजन ।
ReplyDeleteआभारी हूँ आदरणीय मीना दी।
Deleteसादर
वाह
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया सर।
Deleteसादर
सैनिक से जुड़े विषय बहुत संवेदनशील हैं. गंभीर प्रश्न की ओर ध्यान आकृष्ट करती लघुकथा.
ReplyDeleteआभारी हूँ सर।
Deleteआशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
हृदय को गहन झकझोरती दारुण लघुकथा।
ReplyDeleteसैनिक पत्नियों के अदम्य सहनशीलता को नमन करती हूँ।
और मासूम सोच पर आँख भर उठी।
आभारी हूँ दी लघुकथा पर आपका दृष्टिकोण प्राप्त हुआ।
Deleteआशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
सुन्दर सृजन
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया सर।
Deleteसादर
बहुत मार्मिक लघुकथा !
ReplyDeleteनोन-तेल-लकड़ी की फ़िक्र से और बच्चों की परवरिश की ज़िम्मेदारी से, मेनका को फ़ुर्सत मिले तभी तो वह अपने किसी अज़ीज़ की शहादत पर फ़ख्र कर पाएगी.
आभारी हूँ सर लघुकथा पर आपके विस्तृत विचार प्राप्त हुए।
Deleteआशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
हृदयस्पर्शी रचना अनीता जी।
ReplyDeleteआभारी हूँ आदरणीय जिज्ञासा जी।
Deleteसादर
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (२७-0६-२०२१) को
'सुनो चाँदनी की धुन'(चर्चा अंक- ४१०८ ) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
आभारी हूँ सर अपनी प्रथम प्रस्तुति में मेरे सृजन को स्थान देने हेतु।
Deleteसादर
अत्यंत मार्मिक...
ReplyDeleteह्रदयस्पर्शी कहानी...
आभारी हूँ आदरणीय शारदा दी जी।
Deleteसादर
मर्मस्पर्शी सृजन सखी
ReplyDeleteआभारी हूँ सखी।
Deleteसादर
शहीदों पर एक दिन फका फक्र!...बेटी की बातें दिल को झकझोर गयी...
ReplyDeleteबहुत ही हृदयस्पर्शी सृजन।
दिल से आभार आदरणीय सुधा दी जी आपकी विहंग दृष्टि ने लघुकथा का मर्म स्पष्ट लिया।
Deleteसादर
हृदयस्पर्शी लघु कथा...👏👏👏
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय सर मनोबल बढ़ाने हेतु।
Deleteसादर
सुंदर सृजन
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया सर।
Deleteसादर
मर्मस्पर्शी ।
ReplyDeleteकम शब्दों में एक सैनिक जो देश की रक्षा करते हुए शहीद हो गया उसकी पत्नी और बेटी के संवाद मन को भिगो गए ।
आभारी हूँ दी।
Deleteस्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
उफ् !!!
ReplyDeleteआभारी हूँ आदरणीय दी।
Deleteसादर