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Friday 25 June 2021

फ़ख़्र



                          ”आतंकी मूठभेड़ में दो भारतीय जवान शहीद हुए। हमें फ़ख़्र है अपने वीर  जवानों पर जिन्होंने मातृभूमि के लिए अपने प्राण न्यौछावर किए। ऐसे वीर योद्धाओं के नाम इतिहास के सुनहरे पन्नों में लिखे जाएँगे साथ ही आनेवाला समय हमेशा उनका क़र्ज़दार रहेगा।”


टी.वी. एंकर की आवाज़ में जोश के साथ-साथ सद्भावना  भी थी।
आठ वर्ष की पारुल टकटकी लगाए टी.वी देख रही थी कि अचानक अपनी माँ की तरफ़ देखती है।

”तुम्हें फ़ख़्र करना नहीं आता।”

कहते हुए -
स्नेहवश अपनी माँ के पैरों से लिपट जाती है।


”नहीं!  मैं अनपढ़ हूँ ना।”
कहते हुए मेनका अपनी ही साँस गटक जाती है।


” तभी ग़ुस्सा आने पर मुझे और भाई को मारती हो?”
पास ही रखे लकड़ी के मुड्डे पर पारुल बैठ जाती है।


”वो तो मैं... ।”
कहते हुए मेनका के शब्द लड़खड़ा जाते हैं ।
चूल्हा जलाने के लिए लकड़ी तोड़ ही रही थी कि हाथ वहीं रुक जाते हैं और अपनी बेटी की आँखों में देखने लगती है।


”गाँव में सभी ने एक दिन फ़ख़्र किया था ना, तुम उनसे क्यों नहीं सीखती?”
निर्बोध प्रश्नों की झड़ी के साथ पारुल चूल्हे में फूँक देने लगती है।


@अनीता सैनी 'दीप्ति'

30 comments:

  1. लघुकथा के संदेश से मन भीग गया अनीता जी!मर्मस्पर्शी सृजन ।

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    1. आभारी हूँ आदरणीय मीना दी।
      सादर

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया सर।
      सादर

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  3. सैनिक से जुड़े विषय बहुत संवेदनशील हैं. गंभीर प्रश्न की ओर ध्यान आकृष्ट करती लघुकथा.

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    1. आभारी हूँ सर।
      आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

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  4. हृदय को गहन झकझोरती दारुण लघुकथा।
    सैनिक पत्नियों के अदम्य सहनशीलता को नमन करती हूँ।
    और मासूम सोच पर आँख भर उठी।

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    1. आभारी हूँ दी लघुकथा पर आपका दृष्टिकोण प्राप्त हुआ।
      आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया सर।
      सादर

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  6. बहुत मार्मिक लघुकथा !
    नोन-तेल-लकड़ी की फ़िक्र से और बच्चों की परवरिश की ज़िम्मेदारी से, मेनका को फ़ुर्सत मिले तभी तो वह अपने किसी अज़ीज़ की शहादत पर फ़ख्र कर पाएगी.

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    1. आभारी हूँ सर लघुकथा पर आपके विस्तृत विचार प्राप्त हुए।
      आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

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  7. हृदयस्पर्शी रचना अनीता जी।

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    1. आभारी हूँ आदरणीय जिज्ञासा जी।
      सादर

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  8. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (२७-0६-२०२१) को
    'सुनो चाँदनी की धुन'(चर्चा अंक- ४१०८ )
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. आभारी हूँ सर अपनी प्रथम प्रस्तुति में मेरे सृजन को स्थान देने हेतु।
      सादर

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  9. अत्यंत मार्मिक...
    ह्रदयस्पर्शी कहानी...

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    1. आभारी हूँ आदरणीय शारदा दी जी।
      सादर

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  10. मर्मस्पर्शी सृजन सखी

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  11. शहीदों पर एक दिन फका फक्र!...बेटी की बातें दिल को झकझोर गयी...
    बहुत ही हृदयस्पर्शी सृजन।

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    1. दिल से आभार आदरणीय सुधा दी जी आपकी विहंग दृष्टि ने लघुकथा का मर्म स्पष्ट लिया।
      सादर

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  12. हृदयस्पर्शी लघु कथा...👏👏👏

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    1. सादर आभार आदरणीय सर मनोबल बढ़ाने हेतु।
      सादर

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  13. Replies
    1. बहुत बहुत शुक्रिया सर।
      सादर

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  14. मर्मस्पर्शी ।
    कम शब्दों में एक सैनिक जो देश की रक्षा करते हुए शहीद हो गया उसकी पत्नी और बेटी के संवाद मन को भिगो गए ।

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    1. आभारी हूँ दी।
      स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

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  15. Replies
    1. आभारी हूँ आदरणीय दी।
      सादर

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