कुछ समय पहले जब वे खाना खा रहे थे, रोटी का निवाला उनके हलक में अटक गया। उन साठ सैकंड में उन्होंने ज़िंदगी को बड़े क़रीब से देखा है। अब वे दिखावे से दूर जीवन में शांति और सुकून सँजोते हुए अपने पैतृक गाँव वापस आ गये।
एक ओर जहाँ गाँव वाले शहरी ठाठ-बाठ दिखाने का प्रयत्न करते हुए एश-ओ-आराम का साज़-ओ-सामान ख़रीदते हैं वहीं सिद्धार्थ बाबू धोती-कुर्ता और चमड़े की जूती पहनते हैं। घंटों बिजूका की भाँति गेहूँ के खेत में खड़े रहते हैं। आवारा पशुओं को आँखों के सामने खेत में चरने देना और तो और अब वे उन्हें पानी भी पिलाने लगे। पत्नी की फटकार हवा के झोंके की तरह बग़ल से निकल जाती है। इन्हीं हरकतों से गाँव वालों ने नाम भोला रख दिया। कभी-कभी पास में ही रहने वाले बंजारे हुक़्क़ा-चिलम के लिये आने-जाने लगे। उन्हें अब खाना भी परोसा जाने लगा। पत्नी अपना आपा खो बैठती तब एक ही शब्द मुँह से निकलता था-
"अरी पगली! यही तो भाईचारा है। कितना दिखाएगी रईसी। आ अब ज़रा ज़मीन पर बैठ, देख खाने से ज़्यादा खिलाने में मिलता है सुकून। तेरी वजह से चार पेट पेटभर खाना खाते हैं।सोच कितना पुण्य कमाया है तूने।"
तभी दरवाज़े पर आहट होती है-
"ताऊजी¡ बापू ने पाँच सौ रुपये मँगवाए हैं।"
यह बबलू का लड़का था जो क़ैदी की भाँति मुँह लटकाये खड़ा था।
"ले भाई¡ पैसे तो ले जा परन्तु जल्दी दे दीयो अपने बापू से बोल दियो नहीं तो तेरी ताई मुझे घर से निकाल देगी।
सिद्धार्थ पत्नी का मान बढ़ाते हुए कहते हैं।वह बच्चा वहाँ से चला जाता है।
"ख़ैरात बाँटनी शुरू कर दो,देख रही हूँ जब से गाँव आये हो मेरे अपने-अपने की रट लगा रखी है।"
वह पास ही रखे मूढ़े पर बैठ जाती है और अपने पैरों की थकान दिखाने लगती है।
सिद्धार्थ बाबू पास आते हैं और कहते हैं-
"कहो तो तुम्हारे पैर दबा दूँ।" दीवार पर रखे बर्तन में वह पानी डालते हुए कहते हैं। तभी वहाँ लंबे-से घूँघट में छोटे भाई के बेटे की बहू एक कपड़े में बँधे सरसों के पत्ते लिये खड़ी थी। वे आवाज़ लगाते हैं-
"आ बैठ बेटा मैं तो गाँव में जा रहा हूँ।अपनी ताई-सास से बोल, आज तो चूल्हे पर बनाओ रोटी-सब्ज़ी। घणा दिन हो गा चूल्हे की रोटी खाया। " यह कहकर वे वहाँ से चला जाते हैं।
अब वह नवल वधू समझ गयी कि उसे खाना बनाकर ही जाना है वह भी चूल्हे पर।
ReplyDeleteबहुत खूब अनीता जी ,बहुतेरे भाव समेटे सुंदर सृजन ,सादर स्नेह
सादर आभार आदरणीया दीदी
Deleteसादर स्नेह
बहुत सुन्दर आलेख
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय सर
Deleteप्रणाम
वाह!
ReplyDeleteआदरणीया मैम सादर प्रणाम 🙏
बहुत खूब लिखा आपने।
विलुप्त होते इस भाईचारे और लोकाचार को उत्तम ढंग से आपने कथा में उतारा साथ ही कई और रंग भी बिखेर दिए।
बहुत सुंदर
सादर आभार आदरणीया आँचल जी
Deleteसादर स्नेह