"तोगड़े! रिश्तों से उबकाई क्यों आने लगती है? ” कहते हुए वितान पलकों पर पड़े बोझ को तोगड़े से बाँटना चाह रहा था।
"श्रीमान! सभी अपनी-अपनी इच्छाओं की फिरकी फेंकते हैं जब वे पूरी नहीं होतीं तब आती है उबकाई।"
तोगड़े ने हाज़िर-जवाबी से उत्तर देते हुए कहा।
"पिछले पंद्रह महिनों से पहाड़ियों के बीचोंबीच यों सुनसान टीसीपी पर बैठना ज़िम्मेदारी भरा कार्य नहीं है ?"
वितान कुर्सी पर एक लोथड़े के समान पड़ा था। जिसकी आँखें तोगड़े को घूर रही थी। घूरते हुए कह रहीं थीं- ”बता तोगड़े, हम क्यों हैं?धरती पर,आख़िर हमारा अस्तित्व ही क्या है? क्यों नहीं समझती दुनिया कि छ: महीने में एक बार समाज में पैर रखने पर हमें कैसा लगता है?”
"क्यों नहीं? है श्रीमान! है, ज़िम्मेदारी से लबालब भरा है। दिन भर एक भी गाड़ी यहाँ से नहीं गुज़रती फिर भी देखो! हम राइफल लिए खड़े रहते हैं।" कहते हुए- तोगड़े राइफल के लेंस में पहाड़ियों को घूरता हुआ। वहाँ घूमती परछाई खोज रहा था।
"तोगड़े!" कहते हुए वितान ने चुप्पी साध ली ।
" हुकुम श्रीमान।” कहते हुए तोगड़े राइफल के लेंस में देखता ही जा रहा था।
"तुम्हारी पत्नी,दोस्त और घरवाले शिकायत नहीं करते तुम से तुम्हारी ज़िम्मेदारियों को लेकर।" कहते हुए वितान ने अपनी उलझनों को एक-एक कर सुलझाने के प्रयास के साथ अपनी ज़िंदगी से पूछना चाह रहा था। "कि आख़िर उसने किया क्या है?”
"नहीं साहेब! पत्नी को टेम कहाँ ? खेत-खलिहान बच्चे, चार-चार गाय बँधी हैं घर पर। छुट्टी के वक़्त उसे याद दिलाना पड़ता है कि मैं भी घर पर आया हुआ हूँ, पगली भूल जाती है।"
तोगड़े का अट्टहास वितान को गाँव की गलियों में दौड़ा रहा था। वह यादों के हल्के झोंकों की फटकार को थामकर बैठना चाहता था।
"साहेब! समाज में सभी का पेटा भरना पड़ता है। नहीं तो कौन याद रखता है हम जैसे मुसाफ़िरों को, दोस्तों को एक-एक रम की बॉटल चाहिए। घरवालों को पैसे और पत्नी को कोसने के लिए नित नए शब्द, बच्चों के हिस्से कुछ बचता ही कहाँ है? शिकायतों के अंकुर फूट-फूटकर स्वतः ही झड़ जाते हैं।"
वितान की मायूस आँखों को हँसाने के प्रयास के साथ तोगड़े दाँत निपोरता हुए टीसीपी के गोखे में रखी पानी की बॉटल को कोसने लगा।
तपते पहाड़ो से गुज़रते शीतल झोंको के साथ वितान अपनों की स्मृतियों को और गहरे से उकेरने में मग्न हो गया।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
सैनिक जीवन से संबंधित बेहतरीन लघु कथा ।
ReplyDeleteहृदय से आभार आदरणीय संगीता दी जी।
Deleteसादर प्रणाम
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 19.5.22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4435 में दिया जाएगा| चर्चा मंच पर आपकी उपस्थिति चर्चाकारों का हौसला बढ़ाएगी
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबाग
हृदय से आभार आदरणीय सर।
Deleteसादर
वाह!प्रिय अनीता , सैनिकों के मनोभावों को खूबसूरती से उकेरा है ।
ReplyDeleteहृदय से आभार प्रिय शुभा दी जी।
Deleteसादर स्नेह
अनीता, सैनिकों के कठिन जीवन को तुमने बहुत गहराई से समझा है.
ReplyDeleteएक छोटा सा प्रयास था सर, मैंने उनकी पीड़ा महसूस की उसे शब्द देने का प्रयास था। आपका आशीर्वाद मिला सृजन सार्थक हुआ।
Deleteआशीर्वाद बनाए रखें।
सादर
अनिता दी, सैनिकों के जीवन की कड़वी सच्चाई व्यक्त की है आपने।
ReplyDeleteहृदय से आभार ज्योति बहन।
Deleteसादर स्नेह
खुशियाँ बाँटने वाले बहुत होते है। कोई कहे आर्मी वालों से आपके हिस्से का जहर मेरा हुआ। समझदार होने और समझे वालो में बहुत अंतर है। बहुत अच्छी कहानी लिखी। मन में उतर गई।
ReplyDeleteहमेशा खुश रहो।
अपनों की गिनती छोड़ दी है
Deleteसभी अपने से नज़र आने लगे हैं
उम्मीद के बादल नहीं उमड़ते हृदय में
दुपहरी की देह पर गुलमोहर दिखने लगे हैं। रात के आँचल पर बिखरे तारे
शब्दों के अंजर से दोस्ती निभाने लगे हैं।
बहुत ही सुंदर लघु कथा
ReplyDeleteहृदय से आभार अनुज।
Deleteसादर
परिवार से दूर सैनिकों की मनोस्थिति का बहुत ही हृदयस्पर्शी शब्दचित्रण करती लाजवाब लघुकथा।
ReplyDeleteहृदय से आभार सुधा जी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
Deleteआपकी प्रतिक्रिया संबल है मेरा।
सादर
हृदयस्पर्शी लघुकथा ।
ReplyDeleteहृदय से आभार मीना दी।
Deleteसादर
कठिन सत्य सैनिकों का कितनी विसंगतियों में जीवन घुला जाता है और आत्मा में उठते बुलबुले हैं कि बैठने का नाम तक नहीं लेते।
ReplyDeleteअंतर्मन को झकझोरती लघुकथा।
कोई और न समझे इनकी पीड़ा काश घर वाले ही समझ ले। धूप में खिलते गुलमोहर हैं ये जो बादलों की छाँव चाहते हैं। आसमा के बेटे माँ की गोद चाहते हैं।
Deleteआपकी प्रतिक्रिया में इतनी डूब गई कि...
आशीर्वाद बनाए रखें।
सादर प्रणाम दी
गहरे भाव कहानी में … अच्छा लगा आपका हाथ आज़माना इस विधा में
ReplyDeleteजी हृदय से आभार सर 🙏
Deleteवाह वाह!मार्मिक अभिव्यक्ति
ReplyDeleteजी अनेकानेक आभार सर 🙏
Deleteसैनिकों के जीवन संघर्ष और उनकी मनोदशा का भावपूर्ण चित्रण
ReplyDeleteसुंदर सृजन
जी हृदय से अनेकानेक आभार सर 🙏
Deleteसादर प्रणाम
Nice Sir .... Very Good Content . Thanks For Share It .
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Impressive writing. You have the power to keep the reader occupied with your quality content and style of writing. I encourage you to write more.
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