हल्दी के रंग में डूबी साड़ी के पल्लू को ठीक करते हुए एक नज़र अपने गहनों पर डालती हुई कहती है।
"ओह ! मति मारी गई मेरी, यहीं तो रखा है आँखों के सामने।"
पैर की अँगुलियों में अटके बिछुए से साड़ी को खींचती हुई क़दम तेज़ी से बढ़ाती है।
"सुमित्रा! बेटी का ब्याह है। बहू घर नहीं आ रही,यों अपना आपा नहीं खोते।"
दादी ने मुँह बनाते हुए कहा
बूढ़ी दादी पोती के ब्याह में ऐंठी हुई बैठी है कि कोई उससे कुछ क्यों नहीं पूछता। दादी अपनी ऐंठन खोलते हुए मुँह बनाती है। परंतु सुमित्रा चाची अनसुना करते हुए वहाँ से निकल जाती है। हल्दी की रस्म शुरु होती है। हल्दी के रंग में रंगी औरतें खिलखिलाते हुए रस्म में चार चाँद लगातीं हैं। दादी अपने ही गुमान में बैठी देखती है यह सब।
" दीदे फाड़-फाड़कर देखती ही रहोगी क्या ? वहाँ चौखट पर बैठ जाओ। सूबेदारनी अंदर ही घुसी आ रही है। विधवा की छाँव शुभ कार्य में शोभा देती है क्या ?"
सुमित्रा चाची दादी पर एकदम झुँझलाती है।
"सुमित्रा !"
गोमती भाभी की ज़बान लड़खड़ा गई।
न वह अंदर आती है और न ही अपने क़दम पीछे खींचती है। अपमान के ज़हर का घूँट वहीं खड़े-खड़े ही पी गई। क्षण भर अपने आपको संभालते हुए कहती है -
" बड़ी बहू वो शगुन तो लाना ही भूल गई मैं ...आती हूँ कुछ देर में दोबारा।"
गोमती भाभी दर्दभरी मुस्कान बड़ी बहू को थमा जाती है फिर आने के वादे के साथ और छोड़ जाती है एक अनुत्तरित प्रश्न ...
बहुत ही सुन्दर ताना बाना बुना है लघुकथा का बेटी की शादी का माहौल परिवार जनों की हड़बड़ी बूढ़ी दादी का ऐंठना ...टोकना...हल्दी की रश्म में खिलखिलाती औरतें...। मनमस्तिष्क में एक चित्र सा उभर आया है......
विधवा की छाँव शुभ कार्य में शोभा देती है क्या?"
सचमुच आज भी हमारा समाज इस अन्धविश्वास से बाहर नहीं निकल पाया....।
गोमती भाभी दर्दभरी मुस्कान बड़ी बहू को थमा जाती है एक अनुत्तरित प्रश्न के साथ फिर आने के वादे के साथ . अन्त में टीस सी पैदा होती है इस दर्दभरी मुस्कान से... लाजवाब लघुकथा ।
बहुत ही सुन्दर ताना बाना बुना है लघुकथा का
ReplyDeleteबेटी की शादी का माहौल परिवार जनों की हड़बड़ी
बूढ़ी दादी का ऐंठना ...टोकना...हल्दी की रश्म में खिलखिलाती औरतें...। मनमस्तिष्क में एक चित्र सा उभर आया है......
विधवा की छाँव शुभ कार्य में शोभा देती है क्या?"
सचमुच आज भी हमारा समाज इस अन्धविश्वास से बाहर नहीं निकल पाया....।
गोमती भाभी दर्दभरी मुस्कान बड़ी बहू को थमा जाती है एक अनुत्तरित प्रश्न के साथ फिर आने के वादे के साथ .
अन्त में टीस सी पैदा होती है इस दर्दभरी मुस्कान से...
लाजवाब लघुकथा ।
तहे दिल से आभार आदरणीय सुधा दीदी मनोबल बढ़ाने हेतु।स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
Deleteसादर
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक चर्चा मंच पर चर्चा - 3743 में दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
सादर आभार आदरणीय सर चर्चामंच पर स्थान देने हेतु।
Deleteसादर
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 09 जुलाई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
सादर आभार आदरणीय पाँच लिंकों पर स्थान देने हेतु।
Deleteसादर
सुन्दर लघु कथा।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया सर
Deleteअभी कुछ कुप्रथाएं समाज में विद्यमान हैं एक नहीं कई सवालों के जवाब पूछती है आप की कथा
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लघुकथा
सादर आभार आदरणीय मनोबल बढ़ाने हेतु।
Deleteसादर
बहुत कुछ सुधरना है अभी।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया सर मनोबल बढ़ाने हेतु।
Deleteसादर
अनिता दी,आज भी हमारे समाज में विधवा नारी के साथ दुर्व्यवहार ही होता है इस बात को रेखांकित करती सुंदर लघुकथा।
ReplyDeleteतहे दिल से आभार ज्योति बहन यों ही साथ बनाए रखे।
Deleteसादर
वाह ! सुन्दर लघु कथा
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया सर मनोबल बढ़ाने हेतु।
Deleteसादर
बहुत सुंदर लघुकथा सखी 👌
ReplyDeleteतहे दिल से आभार बहना
Deleteबहुत ही संवेदनशील कथा अनीता जी, समाज आज भी ऐसी मानसिकता से नहीं उबर पा रहा है,
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय कामिनी दीदी
Deleteसदैव ही -औरतों ने ही औरतों का मान घटाया है | ये प्रश्न आज भी अनुत्तरित हैं कि एक नारी ही दूसरी को क्यों समझ नहीं पाती ?
ReplyDeleteआभारी हूँ आदरणीय रेणु दीदी यों ही साथ बनाए रखे।
Deleteसादर