”आज जवान के सीने पर एक और मैडल।”
मूँछ पर ताव देते हुए रितेश अपनी पत्नी प्रिया से फोन पर कहता है।
”बधाई हो...।”
प्रिया ख़ुशी और बेचैनी के तराज़ू में तुलते हुए स्वयं को खोजती है कि वह कौनसे तराज़ू में है ?
”अरे! हम तो हम हैं, हम थोड़े किसी कम हैं।”
अपनी ही पीठ थपथपाते हुए घर परिवार की औपचारिकता से परे ख़ुशियों की नौका पर सवार था रितेश।
”मन घबराता है तुम्हारे इस जुनून ...।”
प्रिया अपने ही शब्दों को तोड़ते हुए चुप्पी साध लेती है।
”और हाँ मूँग का हलवा ज़रुर बनाना।
भगवान को भोग लगाना नहीं भूलना, तुम्हारा उनसे फ़ासला कम होगा।”
प्रिया के शब्दों को अनसुना कहते हुए रितेश कहता है और जोर-जोर से हँसने लगता है।प्रिया ने रितेश को इतना ख़ुश कभी
नहीं देखा।
एक सेकंड के लिए प्रिया को लगता है कैसे नज़र उतारुँ रितेश की कहीं मेरी ही नज़र न लग जाए।
”ससुराल बदलना पड़ेगा, कुछ दिनों की ब्रेक जर्नी मिलेगी; पूछना नहीं कहाँ जाना है, मैं नहीं बताऊँगा।”
रिश्तों के मोह से दूर रितेश देश प्रेम में मुग्ध था।
ग़ुस्सा कहे या प्रेम प्रिया के हाथों फोन कट जाता है।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'