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Tuesday 29 June 2021

गठजोड़

         




        ”इसे संदूक के दाहिने तरफ़ ही रखना।”
शकुंतला ताई अपनी छोटी बेटी बनारसी से कहतीं हैं।
हल्का गुलाबी रंग का गठजोड़ जिसमें न जाने कितनी ही गठानें  लगा रखी हैं । देखने पर लगता जैसे इसमें कोई महँगी वस्तु छिपाकर बाँध रखी हो।जब कभी भी शकुंतला ताई की बेटियाँ उनके संदूक का सामान व्यवस्थित करती हैं  तब ताई आँखें फाड़-फाड़ कर उस गठजोड़ को देखती और देखती कि दाहिने तरफ़ ही रखा है न।


”माँ! पिछले चालीस वर्ष से सुनती आ रही हूँ, दाहिने तरफ़ रखना... दाहिने तरफ़ ही रखना, कोई पारस का टुकड़ा है क्या इसमें ?”
बनारसी संदूक के ढक्क्न को ज़ोर से पटकती हुई कहती है और चारपाई पर ताई के पास आकर बैठ जाती है।
विचार करती है कुछ तो माँ ने इस गठजोड़ में बाँध रखा है, हाथ में लेने पर भारी भी लगता है।चाहकर भी वह अपनी माँ से पूछ नहीं पाती है।
सोचती है माँ के बाद सब मेरा ही तो है।


”पाँच मुसाफ़िरी कीं थी तुम्हारे बापू ने इराक़ की, उसके बाद नहीं आया; देख ज़रा पाँच गठानें ही हैं ना।”
शकुंतला ताई बेटी को हाथ का इशारा करती हुई कहतीं हैं।
स्मृतियों के वज़न से हृदय का भार बढ़ जाता है। रुँधा गला सांसों को रोक लेता है, नथुने फूल जाते हैं, सूखी आँखों से बहती पीड़ा चेहरे  की झुर्रियों में खो जाती है।


”हाँ पाँच ही गठानें हैं।”
बनारसी अपनी माँ से कहती है 

अचानक गठजोड़ का वज़न बनारसी को और भारी  लगने लगता है।

@अनीता सैनी 'दीप्ति' 

Friday 25 June 2021

फ़ख़्र



                          ”आतंकी मूठभेड़ में दो भारतीय जवान शहीद हुए। हमें फ़ख़्र है अपने वीर  जवानों पर जिन्होंने मातृभूमि के लिए अपने प्राण न्यौछावर किए। ऐसे वीर योद्धाओं के नाम इतिहास के सुनहरे पन्नों में लिखे जाएँगे साथ ही आनेवाला समय हमेशा उनका क़र्ज़दार रहेगा।”


टी.वी. एंकर की आवाज़ में जोश के साथ-साथ सद्भावना  भी थी।
आठ वर्ष की पारुल टकटकी लगाए टी.वी देख रही थी कि अचानक अपनी माँ की तरफ़ देखती है।

”तुम्हें फ़ख़्र करना नहीं आता।”

कहते हुए -
स्नेहवश अपनी माँ के पैरों से लिपट जाती है।


”नहीं!  मैं अनपढ़ हूँ ना।”
कहते हुए मेनका अपनी ही साँस गटक जाती है।


” तभी ग़ुस्सा आने पर मुझे और भाई को मारती हो?”
पास ही रखे लकड़ी के मुड्डे पर पारुल बैठ जाती है।


”वो तो मैं... ।”
कहते हुए मेनका के शब्द लड़खड़ा जाते हैं ।
चूल्हा जलाने के लिए लकड़ी तोड़ ही रही थी कि हाथ वहीं रुक जाते हैं और अपनी बेटी की आँखों में देखने लगती है।


”गाँव में सभी ने एक दिन फ़ख़्र किया था ना, तुम उनसे क्यों नहीं सीखती?”
निर्बोध प्रश्नों की झड़ी के साथ पारुल चूल्हे में फूँक देने लगती है।


@अनीता सैनी 'दीप्ति'

सीक्रेट फ़ाइल

         प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिका 'लघुकथा डॉट कॉम' में मेरी लघुकथा 'सीक्रेट फ़ाइल' प्रकाशित हुई है। पत्रिका के संपादक-मंड...