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Tuesday 8 December 2020

माँ



               "माँ को बेटियों के पारिवारिक मामलों में ज़्यादा दख़ल  नहीं देनी चाहिए।

बेटियाँ जितनी जल्दी मायके का मोह छोड़ती हैं उनकी गृहस्थी उतनी जल्दी फलती-फूलती है।"

माँ आज भी इन्हीं विचारों की गाँठ पल्लू से लगाए बैठी है। बहुत कुछ है जो उससे कहना है, पूछना है परंतु वह कभी नहीं पूछती, न ही कुछ कहती है। 

समझदारी का लिबास ओढ़े टूटे-फूटे शब्दों को जोड़ती हुई फोन पर कहती है-

"सालभर से ज़्यादा का समय हो गया गाँव आए हुए, देख लेना, गाँव का घर भी सँभाल जाना और एक-दो दिन मेरे पास भी रुक जाना, मन बहल जाएगा।"

मन होता है पूछूँ मेरा या तुम्हारा।

जब भी मन भारी होता है माँ का तब बेपरवाही दर्शाती हुई कहती है-

"गला भारी हो गया, ज़ुकाम है; नींबू  की चाय बनाऊँगी।"

 और फोन काट देती है।

सप्ताह में एक-दो बार उसे ज़ुकाम होता है। कभी-कभी मुझे भी होता है। पूछती नहीं है माँ, बताती है।

" नींबू की चाय बनाकर पी ले।"

मैं उससे भी ज़्यादा समझदारी दिखाती हूँ।

"नेटवर्क नहीं है"...कहकर फोन काटती हूँ...।”

@अनीता सैनी  'दीप्ति'

30 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 08 दिसंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. सादर आभार आदरणीय दी सांध्य दैनिक पर स्थान देने हेतु।
      सादर

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (09-12-2020) को "पेड़ जड़ से हिला दिया तुमने"  (चर्चा अंक- 3910)   पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

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    1. सादर आभार आदरणीय सर चर्चामंच पर स्थान देने हेतु।
      सादर

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  3. दखल किसी का कहीं भी ठीक नहीं सामञ्जस्य सही है।

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    1. सादर आभार आदरणीय सर सृजन सार्थक हुआ।

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  4. संतुलित सामंजस्य हो तो सब सही....सुंदर रचना

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    1. दिल से आभार
      सही कहा-
      संतुलित सामंजस्य हो तो सब सही।
      सृजन सार्थक हुआ।

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  5. जीवन में संतुलन, सामंजस्य और व्यवहार कुशलता से मानव का आत्मविश्वास संवरता है जिससे वह अपने जीवन को सफलतापूर्वक जीता है । ये गुण कई बार हमें अनुभवों से तो कई बार विरासत में मिलते हैं। बहुत सुन्दर संदेश देती गंभीर विषय पर सशक्त लघुकथा ।

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    1. दिल से आभार आदरणीय मीना दी।
      सारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु। आपकी प्रतिक्रिया संबल है मेरा।
      स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

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  6. हमेशा की तरह अर्थपूर्ण आलेख, आपने सही कहा, किसी भी रिश्ते में ज़रूरत से ज़्यादा दख़ल देना रिश्तों में दरार डाल जाता है, लेकिन सम्प्रति समाज को देखते हुए, कुछ हद तक पुत्रियों को अपनी मां से मानसिक व नैतिक सहयोग की भी ज़रूरत होती है अतः सामंजस्य का सेतु बनाये रखना भी आवश्यक है - - नमन सह।

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    1. बहुत-बहुत शुक्रिया सर सारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु।
      आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

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  7. वाह!प्रिय अनीता ,बहुत खूबसूरत भावाभिव्यक्ति ।

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    1. दिल से आभार प्रिय शुभा दी।आशीर्वाद बनाए रखे।

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  8. सप्ताह में एक-दो बार उसे ज़ुकाम होता है। कभी-कभी मुझे भी होता है। पूछती नहीं है माँ, बताती है।

    " नींबू की चाय बनाकर पी ले।"

    मैं उससे भी ज़्यादा समझदारी दिखाती हूँ।
    ओह!!!
    अक्सर एक दूसरे की याद में सुबकने को जुकाम का बहाना बना कर दिल की दिल में दबाकर समझदारी का लिबास ओढ़े माँ बेटी खींचती रहती हैं अपनी अपनी गृहस्थी की गाड़ियां.....
    सामजस्य ही तो है ये भी...अनकहा सामजस्य... बेटी नहीं बोलती पर माँ जानती है उलझने उसके जीवन की ...।आखिर उन्हीं राहों से तो गुजरती आयी है अभी तक...और सुझाती भी हैं निकलना उलझनों से सांकेतिक शब्दों में...नींबू वाली चाय की तरह।
    बहुत ही लाजवाब भावपूर्ण हृदयस्पर्शी सृजन।

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    1. निशब्द हूँ दी आपकी प्रतिक्रिया से।
      प्रेम सभी हदें तोड़ देता है प्रेम में दायरा के आकलन करना कहा संभव है। दिल की गहराइयों से बहुत बहुत आभार।
      सादर

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  9. ज़िंदगी में उलझनों से निकलने की सीख देती हुयी बहुत ही लाजवाब भावपूर्ण मार्मिक रचना लिखी है दीदी आपने ......

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    1. दिल से आभार बहना प्रतिक्रिया हेतु।तुम्हारे लिए भी है।शिकायत मत करना कि मैंने हाथ छोड़ा। स्नेह आशीर्वाद.
      ख़ुश रहो।

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  10. बेहद हृदयस्पर्शी

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया दी।

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  11. मन भारी हो गया ,लाजवाब

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    1. दिल से आभार दी।
      अत्यंत हर्ष हुआ आपकी प्रतिक्रिया मिली।

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  12. मां-बेटी के बीच ये मौन- संवाद ही तो वो शक्ति थी जिससे पिछली पीढ़ी की बेटियां अपना घर-बार सहजता से संवार लेती थी,आज इसी शक्ति को तो मां बेटी दोनों ही खो चुकी हैं और घर बस कम रहें है,उजड़ते ज्यादा है , बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति प्रिय अनीता जी

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    1. दिल से आभार आदरणीय कामिनी दीदी सुंदर सारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु। सही कहा आपने समय बहुत बदल गया है।
      सादर

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  13. Replies
    1. बहुत बहुत शुक्रिया अनुज।

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  14. अद्भुत!!
    वैसे तो माँ की सीख सुगणी है सत्य सटीक ,पर इस सीख के पिंजरे में कैद दोनों ही तड़पते हैं, बेबस से ,जगत की नीतियों को निभाते हुए भी जो स्नेह का एक अटूट नाता है वो कहाँ टूट पाता है, बस महसूस करती रहती है बेटियाँ और माँ एक लक्षमण रेखा में घिरी सी ,सावन सिर्फ अंदर बरस कर रह जाता है पर बादलों की मेघमाला कौन छुपा पाता है भला क्या कृत्रिम रौशनी?? बस नींबू की चाय और जुकाम के बहाने जैसी, स्वर की आर्द्रता कभी छुपाये छुपती है बल्कि ज्यादा चोट करती है ।।

    निशब्द ! हूं आपकी अनुभूति से।

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    1. आपकी प्रतिक्रिया सृजन को और निख़ार देती है।लघुकथा का मर्म स्पष्ट करती सारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु दिल से आभार प्रिय दी।स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

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  15. पीढ़ी दर पीढ़ी बेटियाँ अनुकरण कर रही हैं
    कैसे बदलाव हो कौन शुरुआत करे
    शादी के पन्द्रह दिन, महीने दिन, तीन महीने, छ महीने साल भर के अंदर जला दी जा रही, पंखे से लटका दी जा रही, जहर देकर मार दी जा रही

    साहित्य के म्लान दर्पण से नयी पीढ़ी क्या पढ़े...

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    1. आभारी हूँ दी आपकी प्रतिक्रिया मिली।
      स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

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