Monday 17 June 2019
कितना सहेगी और कब तक ?
भविष्य का भयानक चेहरा, असंवेदनशील होती सोच, क्यों नहीं समझ रहे धरा का दर्द, कितना सहेगी और कब तक ?
मैं एक ब्लॉगर हूँ, स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हूँ, प्रकृति के निकट स्वयं को पाकर रचनाएँ लिखती हूँ, कविता भाव जगाएँ तो सार्थक है, अन्यथा कविता अपना मर्म तलाशती है |
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सीक्रेट फ़ाइल
प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिका 'लघुकथा डॉट कॉम' में मेरी लघुकथा 'सीक्रेट फ़ाइल' प्रकाशित हुई है। पत्रिका के संपादक-मंड...
विचारणीय पोस्ट
ReplyDeleteसादर आभार सर ।
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (19-06-2019) को "सहेगी और कब तक" (चर्चा अंक- 3371) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत शुक्रिया सर।
Deleteप्रिय अनीता सबसे पहले अपने नये ब्लॉग के लिए शुभकामनायें स्वीकार करो | पद्य की तरह गद्य में भी तुम्हारा नाम ब्लॉग जगत में चमके यही दुआ और कामना करती हूँ | तुमने नये लेख में प्रकृति के बिगड़ते संतुलन पर बहुत ही संवेदनशीलता का परिचय दिया है जो तुम्हारे भीतर एक सजग रचनाकार होने का परिचायक है |ढेरों प्यार के साथ पुनः बधाई |
ReplyDeleteतहे दिल से आभार आदरणीय रेणु दी हमेशा ही आपकी प्रतिक्रिया मेरा संबल रही है।ऐसे ही स्नेह आशीर्वाद बनाए रखना छोटी बहन पर।
Deleteसादर प्रणाम
Bahut Khub anita ji
ReplyDeleteजी आभार आपका।
Deleteबहुत ही संवेदनशील सूक्ष्म और गहन चिंतन चित्रण अविस्मरणीय औ अभिनंदनीय है।
ReplyDeleteसंदेश परक औ प्रेरणा प्रद है।
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
Deleteसादर
बारिश की पहली बूंदों की भीनी भीनी खुशबू की बराबरी दुनिया का कोई इत्र नहीं कर सकता। पार्क में हर कोई घूमने तो आता हैं लेकिन ज्यादातर लोग प्रदूषण जी फैलाते हैं। बहुत सुंदर रचना।
ReplyDeleteतहे दिल से आभार ज्योति बहन सराहना प्रतिक्रिया हेतु.
Deleteसादर
उन्हें रोककर टोकना भी जरूरी था..कम से कम कूड़ेदान में ही डालते
ReplyDeleteसही कहा आदरणीय दी।सादर आभार मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
Deleteसादर
नये ब्लॉग पर विचारों की नयी फसल उगेगी..अच्छा प्रयास अनु...मेरी शुभकामनाएँ कर्मपथ पर निरंतर अग्रसर रहो।
ReplyDeleteतहे दिल से आभार आदरणीय श्वेता दी मनोबल बढ़ाने हेतु।
Deleteस्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
सादर
सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति
ReplyDeleteसादर आभार रितु दी मनोबल बढ़ाने हेतु।
Deleteसादर
बहुत सुंदर
ReplyDeleteसहृदय आभार आदरणीय
Deleteसादर
सतही सोच ने मानव सभ्यता को विनाश के मुहाने पर ला खड़ा किया है। लघुकथा में नायिका का प्रकृति के बदलते स्वभाव और प्रभाव की ओर गंभीर चिंतन हमें ठिठककर सोचने को विवश करता है।
ReplyDeleteसहृदय आभार आदरणीय
Deleteसादर प्रणाम
वाह !! बहुत ही सुंदर और चिंतन करने को मजबूर करने वाली कहानी
ReplyDeleteसस्नेह आभार प्रिय दी जी
Deleteसादर स्नेह
प्रिय अनीता , सबसे पहले अपने नए ब्लॉग के लिए हार्दिक शुभकामनायें और बधाई स्वीकार करो | तुम्हारे दुसरे ब्लॉग की तरह ये ब्लॉग भी ब्लॉग जगत में छा जाए , यही दुआ और कामना है | पर्यावरण के प्रति तुम्हारा ये संवेदनशील चिंतन एक तुम्हारे एक सजग रचनाकार होने का परिचायक है |तुम्हारे गद्य लेखन की शैली बहुत प्रभावी है | लिखती रहो | मेरा प्यार \
ReplyDeleteतहे दिल से आभार प्रिय सखी
Deleteसादर स्नेह
बहुत सुंदर प्रस्तुति नये ब्लॉग की हार्दिक बधाई सखी 🌹
ReplyDeleteसस्नेह आभार प्रिय सखी
Deleteसादर स्नेह
o wow...story...and you touched the Enviornment topic
ReplyDeleteanitaa ji
bahut achaa lekh ..bdhaayi apko
सस्नेह आभार प्रिय ज़ोया बहन
Deleteसादर