उस दिन घर में सन्नाटा पसरा था, घर की प्रत्येक वस्तु व्यवस्थित परंतु मौन साधे खड़ी थी। घड़ी की टिक-टिक की आवाज़ खामोशी में शब्द बिखेरने का कार्य कर रही थी और भावों ने चुप्पी साध रखी थी। राधिका ने जैसे ही विम्मी के कमरे में प्रवेश किया वह पेंटिग छोड़ माँ की गोद में लेट गई।
शब्दों से नहीं विम्मी रंगों से कहानी बुनती थी। उसका बनाया स्कैच हर बार एक नई कहानी कहता। इन्हीं ख्यालों में खोई राधिका ने देखा कोने में रखा पेंटिंग का सामान बुदबुदा रहा था कि उनके साथ ढेरों वार्तालाप करने के बाद फिर उन पर सफ़ेद रंग चढ़ाकर भावों को छिपा दिया गया था।
राधिका ने जैसे ही विम्मी के हाथ में उसकी पसंदीदा चॉकलेट रखी गंभीर मुद्रा के साथ वह माँ के आलिंगन में सिमट गई।कुछ समय पश्चात सहज हो चॉकलेट को बैड के पीछे अपने पापा की फोटो के पास रख कर अपनी ही दुनिया में खोने के प्रयास में घुल गई। विम्मी अक्सर ऐसा करती थी। कभी-कभार चॉकलेट दो-तीन दिन तक वहीं रखी रहती। हाँ! रखने का तरीका बदल जाता। जिससे पता चलता समय-समय पर रंगों के साथ-साथ चॉकलेट से भी बातें हुआ करती थीं।
राधिका ने धीरे से विम्मी का सर सहलाते हुए कहा- ”सब ठीक है न बेटा?” विम्मी ने एक दम राधिका को जकड़ लिया। वह फूट-फूटकर रोना चाहती थी परंतु उसने ऐसा नहीं किया उसके दो-चार आँसुओं से राधिका की ममता तड़प उठी।
"क्या हुआ बेटा?" राधिका ने फिर कहा।
"सभी के पापा चॉकलेट लाते हैं मेरे पापा छुट्टी कब आएँगे?" उस दिन पहली बार राधिका को लगा, वह कितनी ग़लत थी कि उसकी बेटी कहानी लिखना नहीं बल्कि जीना सीख रही थी।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
बहुत ही सुंदर भावपूर्ण हृदयस्पर्शी लघु कथा
ReplyDelete“शब्दों से नहीं विम्मी रंगों से कहानी बुनती है। उसका बनाया स्कैच हर बार एक नई कहानी कहता है।”
ReplyDeleteकलाकार द्वारा कलाकृति में मन के भाव उकेरना ही तो उसकी कृति को अनमोल बनाता है । उनकी थाह पाना ही उसका वास्तविक सम्मान है । माँ से अधिक इस तथ्य को कौन समझ सकता है । सुन्दर अभिव्यक्ति ।