Powered By Blogger

Wednesday 1 June 2022

दंड



                                            बर्तनों की हल्की आवाज़ के साथ एक स्वर निश्छलता के कानों में कौंधा।

” निर्भाग्य है तू!  यह ले, तेरा श्राद्ध निकाल दिया।” कहते हुए आक्रोशित स्वर में क्रोध ने थाली से एक निवाला निकाला और ग़ुस्साए तेवर लिए थाली से उठ गया।

”मर गई तू हमारे लिए …ये ले…।" मुँह पर कफ़न दे मारा ईर्ष्या ने भी।

 "हुआ क्या?" निश्छलता समझ न पाई दोनों के मनोभावों को और वह सकपका गई। 

 समाज की पीड़ित हवा के साथ पीड़ा से लहूलुहान कफ़न में लिपटी निश्छलता जब दहलीज़ के बाहर कदम रखा तब उसका सामना उल्लाहना से हुआ।

” निश्छल रहने का दंड है यह ! " कहते हुए उल्लाहना खिलखिलाता हुए उसके सामने से गुज़र गया।


@अनीता सैनी 'दीप्ति'

18 comments:

  1. डॉ विभा नायक1 June 2022 at 08:38

    आज भी ऐसी सोच है क्या कर सकते हैं। पर पहाड़ का सीना चीर नदी बन बह निकलना ही तो स्त्रीत्व या संघर्ष है, जिसकी साधना स्त्री करती आ रही है।
    साधुवाद, सत्य प्रकाशित करती रचना।

    ReplyDelete
  2. वाह!प्रिय अनीता ,बहुत खूब ! हमारा समाज और उसकी सोच ,कहाँ बदली है अभी ..? हाँ सोच बदलने का दिखावा जरूर किया जाता है ...अंदर से सब खोखला है ।

    ReplyDelete
  3. बिम्बों के माध्यम से स्त्री की दशा को व्यक्त किया है ।।
    ये उलाहने ही तो स्त्री की असल पीड़ा हैं । बहुत खूब ।

    ReplyDelete
  4. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 2.6.22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4449 में दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति चर्चाकारों का हौसला बढ़ाएगी
    धन्यवाद
    दिलबागसिंह विर्क

    ReplyDelete
  5. स्त्रियों के जीवन की बाधाओं को प्रतीकात्मक शैली में इंगित करती मर्मस्पर्शी लघुकथा ।

    ReplyDelete
  6. सामाजिक व्यवस्था में आज भी बहुत जगह नारी पर प्रतिबंध है , आज भी उसकी प्रगति को पुरुषों से होड़ या पुरुषों के क्षेत्र में प्रवेश करना माना जाता है ।
    आपने प्रतीक बहुत सटीक लिए हैं कौन से शब्द कौनसी मनोवृत्ति में निकलते है का सुंदर प्रयोग।
    साधुवाद सुंदर प्रस्तुति के लिए।

    ReplyDelete
  7. अपने पुरुषत्व को सिद्ध करने के लिए स्त्री को सात तालों में बंद रखने वालों को नपुंसक कहना ही उचित होगा.

    ReplyDelete
  8. पुरुषों द्वारा ऐसे उद्गार अक्सर कमतरी के भाव के चलते ही कहे जाते हैं...विचारणीय लघु-कथा...

    ReplyDelete
  9. आज भी समाज का ये दृश्य देखने में आ जाता है ।स्त्री परक सराहनीय लघुकथा ।

    ReplyDelete
  10. एक जीवन्त रेखाचित्र।

    ReplyDelete
  11. हृदयस्पर्शी सृजन

    ReplyDelete
  12. These are genuinely fantastic ideas about blogging really. You have touched some very nice points here. Please keep up this good writing.

    ReplyDelete
  13. What’s Happening i’m new to this, I stumbled upon this I’ve discovered It positively helpful and it has helped me out loads.

    ReplyDelete
  14. वाह!!!
    कमाल के प्रतीकात्मक बिम्ब
    दिल को झकझोरती लाजवाब लघुकथा

    ReplyDelete

सीक्रेट फ़ाइल

         प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिका 'लघुकथा डॉट कॉम' में मेरी लघुकथा 'सीक्रेट फ़ाइल' प्रकाशित हुई है। पत्रिका के संपादक-मंड...