Powered By Blogger

Wednesday 27 April 2022

मोजड़ी


                   " माँ! बहुत चुभती हैं मोजड़ी।”

 पारुल ने रुआशा चेहरा बनाकर माँ से कहा।

" नई मोजड़ी,  सभी को अखरती हैं! धीरे-धीरे इनकी ऐसी आदत लगती है कि कोई और जँचती ही नहीं पैरों में।"

पारुल की माँ झूठ-मूठ की हँसी होठों पर टाँकते हुए मेहंदी के घोल को बेवजह और घोंटती जा रही थी। 

"इनसे पैरों में पत्थर भी धँसते हैं।"

पारुल ने अपने ही पैरों की ओर एक टक देखा। मासूम मन जीवन के छाले देख सहम गया।

 शून्य भाव में डूब चुकी उसकी माँ दर्द, पीड़ा; प्रेम इन शब्दों के अहसास से उबर चुकी थी।बस एक शब्द था गृहस्थी जिसे वह खींच रही थी। पारुल के पैरों में पड़े छालों पर मेहंदी का लेप लगाते हुए स्वयं के जीवन को दोहराती कि कैसे जोड़े रखते हैं रिश्तों की डोर? परिवार शब्द के गहरे में डूब चुकी उसकी माँ। बस एक ही शब्द हाँकती थी कुटुंब। उसकी माँ ने मेहंदी की कटोरी रखते हुए कहा-

”यह शब्द तेरे लिए नया है न, तभी चुभती हैं मोजड़ी।”

@अनीता सैनी 'दीप्ति'

22 comments:

  1. मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति

    ReplyDelete
    Replies
    1. हृदय से आभार ज्योति जी।
      सादर

      Delete
  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 28-04-22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4414 में दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति चर्चा मंच की शोभा बढ़ाएगी
    धन्यवाद
    दिलबाग

    ReplyDelete
    Replies
    1. हृदय से आभार सर मंच पर स्थान देने हेतु।
      सादर

      Delete
  3. सहनशील होना ठीक है पर दुःख को देखकर भी उससे मुक्त होने के लिए प्रयास न करना भी तो दुर्बलता की निशानी है

    ReplyDelete
    Replies
    1. सच कहा आपने आदरणीय अनीता दी जी, शादी के बाद बेटियों से मुँह फेरना हमारे समाज की पुरानी परम्परा है। जो भी है मन में उठे एक ख़याल का ताना बाना बुना। आइना है मुँह कितने ही फेरे।
      सादर

      Delete
  4. के बात स बाई सा घणी चोखी लिखी काणी।
    पण की की बेटी न समझाओंगा और की की माँ न... थारो मन घणो काचो स।
    थारी हिम्मत न तो पुरो गाँव सरावे।
    दादी घणो आशीर्वाद भेजो।

    ReplyDelete
    Replies
    1. हृदय से आभार आपका...अपना नाम लिखते मुझे अत्यंत हर्ष होता। अगर आप fb पर हैं तब भी बताना कौन हो?
      मध्यम वर्ग में हर माँ बेटी की कहानी है। परंतु अब बदलना चाहिए। आपने लघुकथा के मर्म को समझा हृदय से आभार समाज का एक पहलू दिखाने का प्रयास था।
      दादी का हृदय से बहुत बहुत आभार।
      सादर

      Delete
  5. मेहन्दी के लेप और मोजड़ी के माध्यम से रिश्तों का ताना-बाना बहुत बारीकी से बुना है । अति सुंदर सृजन ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. हृदय से आभार आदरणीय मीना दी आपकी प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ।
      सादर स्नेह

      Delete
  6. gahan abhivyakti ,bahut sunder !!

    ReplyDelete
    Replies
    1. हृदय से आभार आपका।
      सादर

      Delete
  7. सराहनीय ; गहन विचारों से गुंथा गया ताना बाना।
    अपनी मंज़िल स्वयं तय करेगी, यह लघुकथा।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी हृदय से आभार मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
      सादर

      Delete
  8. वाह!अनीता ..क्या बात है ।शानदार सृजन !

    ReplyDelete
    Replies
    1. हृदय से आभार प्रिय शुभा दी जी।
      सादर

      Delete
  9. दिल को छू गई यह रचना।
    कभी कभी ही ऐसी रचनाएं प्रकाशित होती हैं।

    ReplyDelete
    Replies
    1. हृदय से अनेकानेक आभार सर आपकी प्रतिक्रिया से उत्साह द्विगुणित हुआ।
      सृजन सार्थक हुआ 🙏

      Delete
  10. स्त्री जीवन के मर्म को गहराई से खींचा है अनीता जी ।
    सच बहुत कुछ कहती हुई लघुकथा । बधाई।

    ReplyDelete
    Replies
    1. हृदय से आभार जिज्ञासा जी।

      Delete
  11. नई - नई मोजड़ी हो या नये रिश्ते की परेशानियां माँ का अनदेखा करना कहाँ ठीक है बेटियाँ सामजस्य बिठा लेती हैं जैसे तैसे...पर कई बार मुश्किलें ऐसी बढ़ती हैं का छोड़ ही देती हैं वे जीने का मोह...
    बहुत ही हृदयस्पर्शी लघुकथा।

    ReplyDelete
    Replies
    1. शब्द नहीं हैं आपकी प्रतिक्रिया हेतु कि क्या कहूँ। स्वयं से यही कहूँगी
      उठ ऐ नारी!
      सुन! अंतर मन की किलकारी
      पूर्णिमा की चाँदनी
      स्वयं के वजूद की कर सवारी।
      सादर स्नेह दी

      Delete

सीक्रेट फ़ाइल

         प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिका 'लघुकथा डॉट कॉम' में मेरी लघुकथा 'सीक्रेट फ़ाइल' प्रकाशित हुई है। पत्रिका के संपादक-मंड...