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Thursday 13 January 2022

निक्की

       


               ”माइंड को लोड क्यों देने का साहेब?”

नर्स डॉ. के साथ केबिन से बाहर निकलते हुए कहती है।

"बच्ची ने कुछ खाया?”

डॉ. निक्की की ओर संकेत करता हुए कहता है।

”नहीं साहेब! आजकल के बच्चे कहाँ कुछ सुनते हैं?

बार-बार एक ही नम्बर डायल कर रही है।"

नर्स दोनों हाथ जैकेट में डालते हुए शब्दों की चतुराई दिखाने में व्यस्त हो जाती है।

"साहेब लागता है ये केस मराठी छै; बार-बार बच्ची आई-बाबा बोलती।”

नर्स छ-सात साल की निकी के आँसू पौछते हुए उसका मास्क ठीक करने लगती है।

”जब तक बच्ची के रिलेटिव नहीं पहुँचते; आप बच्ची का खयाल रखें।”

डॉ. फ़ाइल नर्स के हाथ में थमाते हुए। पास ही बैठी अपनी बहन शिखा को हाथ से चलने का इशारा करता है।

”साहेब! आर्मी वालों का कोई ठिकाना नहीं होता। कब तक लौटेगा…? मेरे को इतना टाइम कहाँ…! मैं क्या करेगी; कहाँ रखेगी बच्ची को ?"

नर्स पीछे  से आवाज़ लगाती है।


@अनीता सैनी 'दीप्ति'

28 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शनिवार (15-01-2022) को चर्चा मंच     "मकर संक्रान्ति-विविधताओं में एकता"    (चर्चा अंक 4310)  (चर्चा अंक-4307)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'   

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया सर चर्चामंच पर स्थान देने हेतु।
      सादर

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  2. दुनिया की कड़वी सच्चाई दर्शाता मर्मस्पर्शी सृजन ।

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय मीना दी जी।
      सादर स्नेह

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  3. मर्मस्पर्शी चित्रण।

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया।
      सादर

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    1. समय का खेल है आदरणीय दी।
      सादर

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  5. यह बहुत बड़ा दुर्भाग्य ही है कि जो हमारी जान की रक्षा के लिए अपनी जान की परवाह किए बगैर सर्द गर्म बरसात में हमेशा डटा रहता है सीमाओं पर,उसी के परिवार के देखभाल करने के लिए हमारे पास वक़्त नहीं होता है!
    समाज की कड़वी सच्चाई को दर्शाता बहुत ही मार्मिक वह हृदय स्पर्शी लघुकथा!

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    1. प्रिय मनीषा जी समाज का सच है जिसे हर कोई
      जिह्वा के नीच छिपा कर रखता है और शब्दों में महानता बिखेरते हैं परंतु समझ के पीछे यथार्थ कुछ और होता है।
      सारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार।
      सादर स्नेह

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  6. मार्मिक सच्‍ची कहानी... सबक भी देती है अनीता जी...इसका मर्म हम तक पहुंचाने के लिए धन्‍यवाद

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    1. आभारी हूँ आदरणीय दी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
      आशीर्वाद बनाए रखें।
      सादर

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  7. आर्मी वालों का कोई ठिकाना नहीं होता। कब तक लौटेगा…?
    सबके ठिकानों की सुरक्षा में दुश्मनों को ठिकाने लगाने वाले इन आर्मी वालों का अपना कोई ठिकाना नहीं होता...
    बहुत ही हृदयस्पर्शी लाजवाब लघुकथा।

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    1. आभारी हूँ आदरणीय सुधा दी जी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
      सब नियति के खेल है स्वार्थ के पायदान पर खड़ा समाज का सच है।
      हार्दिक आभार दी।
      सादर स्नेह

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  8. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर रविवार 16 जनवरी 2022 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया सर पांच लिंको पर स्थान देने हेतु।
      सादर

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  9. मर्मस्पर्शी रचना

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय दी।
      सादर

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  10. सुन्दर कथानक
    शिल्प अधूरा क्यों
    शीर्षक श्रम खोजता है

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय विभा दी।
      सम्भावनाओं की आहटें....।
      आशीर्वाद बनाए रखें।
      सादर प्रणाम

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  11. वाह!हृदय को आंदर तक छू गई आपकी रचना प्रिय अनीता ।

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय शुभा दी।
      सादर स्नेह

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  12. समाज की कड़वी सच्चाई,दिल में बहुत गहरे तक छू गई आपकी मार्मिक अभिव्यक्ति,

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    1. आभारी हूँ आदरणीय जिज्ञासा दी।
      प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ।
      सादर

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  13. बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आपका।
      सादर

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  14. नर्स नन्हीं निक्की का ख्याल रक्खे या न रक्खे, कृतज्ञ राष्ट्रवासी उसे प्यार,ममता और आसरा ज़रुर देंगे.

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    1. काश सच्च में उस बच्ची को कोई आप जैसे अभिभावक मिले।
      सच्च कहूँ तो सर इंसानियत नहीं रही। स्वार्थ के पुतले हो गए है रिश्ते।
      आशीर्वाद बनाए रखें।
      सादर

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