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Thursday 30 December 2021

नसीहत कचोटती है

   


                 ”बनारसी साड़ियों का चलन कहाँ रहा है?आजकल भाभी जी!”

कहते हुए प्रमिला अपनी साड़ी का पल्लू कमर में दबाती है और डायनिंग-टेबल पर रखा खाना सर्व करने में व्यस्त हो जाती।

” और यह जूड़ा तो सोने पे सुहागा, निरुपमा राय की छवि झलकती है। कौन बनाता है आज इस समय में; मुझे देखो! एक पोनी से परेशान हूँ।”

कहते हुए प्रमिला दिव्या की ओर दृष्टि डालती है।

 ”चलन का क्या छोटी! बदलता रहता है। तन ढकने को सलीक़े के कपड़े होने चाहिए।”

दिव्या अपनी कुर्सी को पीछे खिसकाकर बैठते हुए कहती है।

”बात तो ठीक है तुम्हारी परंतु समय के साथ क़दम मिलाकर चलना भी तो कुछ …!”

लड़खड़ाते शब्दों को पीछे छोड़ प्रमिला सभी को खाने पर आमंत्रित करते हुए आवाज़ लगाती है।

”तुम भी बैठो प्रमिला! "

कहते हुए दिव्या प्रमिला को हाथ से इशारा करती है।

” अब आपको कैसे समझाऊँ, शहर में लोग परिवार के सदस्य या कहूँ मेहमानों का आवागमन देखकर ही उनकी इमेज़ का पता लगा लेते हैं कि परिवार कैसा है?"

प्रमिला रिश्तों की  जड़े खोदने का प्रयास करती है।

” मेहमान…!”

कहते हुए दिव्या भूख न होने का इशारा करती है।

”अब किसी को कुछ कहो तो लगता है नसीहत से कचोटती है, भाई साहब की छवि है वीर में, इसे आर्मी ज्वाइन क्यों नहीं करवाते? अब कहोगे वीर ही क्यों...?”

इस तंज़ से उत्पन्न बिखराव के एहसास से परे प्रमिला निवाला मुँह में लेते हुए कहती है।

" आती हूँ मैं...।”

कहते हुए दिव्या पानी का गिलास हाथ में लिए वहाँ से चली जाती है।


@अनीता सैनी 'दीप्ति'

16 comments:

  1. वाह!प्रिय अनीता ,बहुत खूब ! समाज का यही चलन है ,सीख देने वाले बहुतेरे हैं ।

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    1. सही कहा आदरणीय शुभा दी जी आज के समय में समाज की बड़ी समस्या है यह, स्वयं को नहीं दूसरों को ज्यादा बदलने का प्रयास रहता है।
      सादर

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  2. समाज में व्याप्त बाह्याडम्बर और अनावश्यक हस्तक्षेप की प्रवृत्ति को दर्शाती हृदयस्पर्शी लघुकथा । बहुत सुन्दर सृजन अनीता जी।

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    1. सही कहा आदरणीय मीना दी जी समाज में व्याप्त यह बाह्याडम्बर सीधे और सरल लोगों को बहुत तोड़ता है मैंने बहुत से लोगों को इससे जूझते हुए देखा है।
      सादर

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  3. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (05-01-2022) को चर्चा मंच      "नसीहत कचोटती है"   (चर्चा अंक-4300)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'   

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर मंच पर स्थान देने हेतु।
      सादर

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  4. सुन्दर लघु कथा

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  5. सही... पर उपदेश कुशल बहुतेरे! सुन्दर लघुकथा!

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर।
      सादर

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  6. बहुत ही उम्दा लघुकथा

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    1. आभारी हूँ प्रिय मनीषा जी।
      सादर स्नेह

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  7. "नसीहत" का मतलब ही लोग यही निकलते हैं-दुसरो को ज्ञान देना अपनाना नहीं। सुन्दर लघुकथा प्रिय अनीता

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया कामिनी जी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
      सादर

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  8. आपकी लेखन कला अद्वितीय है,बहुत सुंदर

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आपका।
      सादर

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