”पुष्पा तुम ने तो प्रताप को चोखी पट्टी पढ़ाई।”
कहते हुए-
रेवती दादी अपनी चारपाई पर बिछी चादर ठीक करने लगती है।
नब्बे का आंकड़ा पार करने पर भी पोळी के एक कोने में अपना डेरा जमाए हुए कहती है-
”घर में दम घुटता है”
चारपाई के नीचे रखी एक संदूक जिसमें पीतल का बड़ा-सा ताला जड़ा है। दो लोहे के पीपे जो देखने पर आदम के ज़माने के लगते हैं।
”अब के भूचाल आग्यो।"
पुष्पा खीजते हुए कहती है।
अपने कमरबंद को ठीक करने के साथ-साथ चोटी को पल्लू से छिपा लेती है।कही दादी-सास इस पर न कुछ नया सुना दे।
”अरे बावली ! सात पिढ़ियाँ की नींव रखी है तुमने और कद्दू की सब्ज़ी अकल के खेत में रख्याई। कह तो कोई हलवा पूरी जिमाव।”
कहते हुए -
दादी खिड़की में रखे अपने बर्तनों को निहारती है।
सोने से दमकते पीतल के बर्तन आज भी अपने हाथों से साफ़ करती है।विश्वास कहाँ किसी पर कोई अच्छे से न साफ़ करें।
”ढोक दादी-बूआ।”
एक बीस-बाइस वर्ष का नौजवान पैर छूता है।
”दूदो नहाव पूतो फलो।”
कहते हुए-
रेवती दादी की आँखें भर आईं। बार-बार उसका हाथ अपने हाथ में लेकर सहलाती है वह नौजवान उठने का प्रयास करता है परंतु उठ नहीं पाया। साथ ही तेवती दादी का कलेजा मुँह को आ गया।
”पूरा ! तुम लोगो ने आँगन के टुकड़े तो कोनी करा न और बा खेजड़ी उठे ही खड़ी है न, कुएँ में पाणी तो ख़ूब है ना।”
आशीर्वाद के साथ-साथ स्नेह की बरसात कुछ यों हुई।
रेवती दादी का कोमल स्वभाव आज ही सभी ने देखा।
”हाँ सब सकुशल है बूआ जी।”
कहते हुए-
लड़का बैग से पानी की बॉटल निकलकर पीने लगता है।
”पूरा ! अपणे कुएँ को पाणी।”
और वह खिलखिला उठती है।
रेवती दादी ने झट से पानी की बॉटल हाथों में ले पल्लू से छिपा लेती है और ठंडा पानी अंदर से लाने का इशारा करती है।
और फिर वह लड़का अपने साथ लेकर आया सामान बैग से बाहर निकालता है कुछ मिठाई के डिब्बे और फ़्रूट के साथ एक बड़ा-सा कद्दू ।
”बड़ी माँ ने भेजा है आपके वास्ते, अपणे कुएँ का है।”
लड़का बड़े ही सहज स्वभाव से कहता है।
अब रेवती दादी लड़के का हाथ छोड़ कद्दू को सहलाने लगती है।
”मायके का तो उड़ता काग भी घणा चोखा होव है।”
कहते हुए -
मायके की तड़़प रेवती दादी के कलेजे से आँखों में छलक आई।
और कद्दू को सिहराने रख बिन माँ की बच्ची की तरह भूखी ही सो गई।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
उम्र चाहे बड़ी हो या छोटी.., मायके की यादों की कसक दिल से कहाँ जाती है । कथा नायिका 'दादी बुआ'के माध्यम से बहुत मर्मस्पर्शी संदेश देती बहुत सुन्दर लघुकथा ।
ReplyDeleteसारगर्भित प्रतिक्रिया से लघुकथा को सार्थकता प्राप्त हुई आदरणीय मीना दी।
Deleteदिल से आभार आपका।
सादर
बहुत सुंदर लघुकथा,दादी भुवा का जीवंत चित्रण कथा को और भी दमदार बना रहा है।
ReplyDeleteपीहर के प्रति स्नेह को कम शब्दों में बहुत सुंदरता से उकेरा है।
सुंदर।
आपकी विहंग दृष्टि ने सृजन को जीवंत किया आदरणीय कुसुम दी। सहृदय आभार।आशीर्वाद बनाए रखे।
Deleteसादर
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 24-06-2021को चर्चा – 4,105 में दिया गया है।
ReplyDeleteआपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
धन्यवाद सहित
दिलबागसिंह विर्क
आभारी हूँ आदरणीय दिलबाग सर लघुकथा को चर्चामंच पर स्थान देने हेतु।
Deleteसादर
बहुत सुंदर लघुकथा
ReplyDeleteआभारी हूँ अनुज।
Deleteसादर
सच में बुढापे और जीवन के अंतिम क्षण तक भी मायके का मोह नहीं छूटता....।
ReplyDeleteकुएं का पानी कद्दू से दादी बुआ का मोह दिखाकर लघुकथा को जीवंत बना दिया आपने ।
बहुत ही लाजवाब लघुकथा।
सारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु दिल से आभार आदरणीय सुधा दी।
Deleteलघुकथा को प्रवाह मिला।
सादर
सुंदर कहानी
ReplyDeleteआभारी हूँ आदरणीय अनिता दी जी।
Deleteसादर
मायके की याद और वहां के हर चीज का मोह कहाँ जाता है। बहुत सी सुंदर लघु कथा प्रिय अनीता
ReplyDeleteआभारी हूँ आदरणीय कामिनी दी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
Deleteसादर
बहुत सुंदर लघुकथा।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय अनुराधा बहन।
Deleteसादर
स्त्री के मन में मायके का कितना मोह होता है इस लघु कथा में झलकता है । सुंदर कथा ।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय दी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
Deleteसादर