”कल सिया का जन्मदिवस है।”
शीला अपने यहाँ काम पर आने वाली पूर्वा से कहती है।
”जी बच्चों को साथ लिए आती हूँ फिर ?”
पूर्वा साड़ी के पल्लू से हाथ पोंछती हुई कहती है।
”हाँ देख लो! वैसे ठीक ही है, मेहमान ज़्यादा होंगे।”
शीला बालों को झाड़ते हुए टॉवल से बाँधती हुई कहती है।
”अरे! छोड़, पल्लू क्यों चबा रही है? कहा है न जीजी ने, कल तुझे भी आना है।”
पूर्वा अपनी बेटी के मुँह से साड़ी का पल्लू खींचती हुई दोनों हाथों से पकड़कर सीने से लगा लेती है।
” कल तुझे लाल वाली फ्रॉक पहनाऊँगी! चल अब बरामदे में बैठ, मैं आती हूँ।”
पूर्वा बेटी का माथा चूमते हुए फिर अपने काम में उलझ जाती है।
” हाँ, परंतु ध्यान रहे पिछली बार इसने तीन प्लेटें तोड़ डालीं थीं, इस बार ऐसा न हो।”
शीला हिदायत देते हुए हॉल से बाहर, गार्डन में आकर बैठ जाती है।
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
इन्सान की प्रवृत्ति पर सोचने पर मजबूर करती हुई अच्छी लघुकथा लिखी है आपने अनीता जी ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लघुकथा
ReplyDeleteमनोभाव दर्शाती सुंदर लघु कथा
ReplyDeleteसोचने को विवश करती सुन्दर लघु कथा।
ReplyDeleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार ( 08 -03 -2021 ) को 'आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस है' (चर्चा अंक- 3999) पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
विचारणीय ,मन के भाव को सुंदर तरीके से बयां करती हुई सुंदर रचना, महिला दिवस की बधाई हो, नमन
ReplyDeleteसुन्दर लघु कथा।
ReplyDeleteसुंदर लघु कथा प्रिय अनीता
ReplyDeleteमहिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
सोचने को विवश करती कथा
ReplyDeleteशुभकामनाएं
बहुत ही हृदयस्पर्शी विचारणीय लघुकथा
ReplyDeleteघर में काम करने वालियों की बेबसी ।
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी रचना ।