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Saturday 22 August 2020

पापा बदल गए

                                                                     
     "पर्वत जल रहे थे तभी पत्थर पिघलने लगे। नदी का बहता पानी भी ठहर-सा गया था,न जाने क्यों  अचानक पेड़-पौधे दौड़ने लगे और पक्षियों के पंख भी  नहीं थे ममा,वे तड़प रहे थे। जंगली-जानवरों के पैर नहीं थे वे दौड़ नहीं पा रहे थे, पुकार रहे थे वे मुझे परंतु आवाज़ नहीं आ रही थी। आप मेरे स्वप्न में कहीं नहीं थे, पापा को पुकारा वो नहीं आए।पापा बदल गए ममा,वे क्यों नहीं आए।उनकी शिक्षा बुख़ार में जल रही थी, पुकार रही थी। उन्हें आना चाहिए था न ममा।"

    दो दिन से बुख़ार से जूझ रही शिक्षा अचानक रात को बड़बड़ाते हुए उठती है और कहते हुए रोने लगती है।

    अपने कलेजे के टुकड़े की ऐसी हालत देख मीता की आँखें भर आईं।
माथे पर गीली पट्टी रखकर शिक्षा को सुलाने का प्रयास भी विफल रहा।
बुख़ार ने शिक्षा के मन की सभी तहें खोल दीं जो वह कभी खेल-खेल में न कह पाई।
शिक्षा के व्याकुल मन की सीलन में मीता रातभर करवट बदलती रही।

©अनीता सैनी 'दीप्ति'

34 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (23-08-2020) को    "आदिदेव के नाम से, करना सब शुभ-कार्य"   (चर्चा अंक-3802)    पर भी होगी। 
    --
    श्री गणेश चतुर्थी की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  
    --

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर चर्चामंच पर स्थान देने हेतु ।

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  2. बच्चों के अभिभावकों के साथ भावात्मक जु़ड़ाव को उकेरती बाल मनोविज्ञान के धरातल पर हृदयस्पर्शी लघुकथा । सशक्त और प्रभावी सृजनात्मकता । गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाएं ।

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    1. आभारी हूँ आदरणीय मीना दी आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया ने लघुकथा को प्रवाह दिया। मर्मस्पष्ट करती प्रतिक्रिया हेतु तहे दिल से आभार आपका।
      सादर

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  3. सुन्दर प्रस्तुति.

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया सर मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
      सादर

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  4. बहुत ही हृदयस्पर्शी लघुकथा

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय दी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु ।
      सादर

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  5. Replies
    1. बहुत बहुत शुक्रिया सर ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
      सादर

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  6. बाल-मन के भावों का सुंदर चित्रण अनीता जी

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    1. सादर आभार आदरणीय कामिनी दीदी मनोबल बढ़ाने हेतु।

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  7. बच्चों के मनोभाव पर आधारित बहुत ही सुन्दर लघुकथा...।

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    1. सादर आभार आदरणीय सुधा दीदी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
      सादर

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  8. मर्मस्पर्शी पोस्ट।

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया सर मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
      सादर

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  9. हृदयस्पर्शी लघुकथा । हार्दिक आभार ।

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    1. आभारी हूँ आदरणीय मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
      सादर

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  10. बहुत ही सुंदर लिखते हो आप।
    पापा नहीं बदलते उनके हालात बदल जाते ।
    शुभकामनाओं के साथ ।

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    1. सही कहा आपने। बहुत बहुत शुक्रिया आपका
      सादर

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  11. नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 25 अगस्त 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर पाँच लिंकों पर स्थान देने हेतु ।

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  12. कई सन्देश समेटे हुऐ।

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    1. सादर आभार आदरणीय सर मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
      सादर प्रणाम

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  13. बालमन के अन्तरद्वन्द को दर्शाती सुंदर लघुकथा प्रिय अनीता ।

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    1. तहे दिल से आभार आदरणीय शुभा दी।
      स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

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  14. मार्मिक रचना

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    1. सादर आभार आदरणीय अनिता दीदी ।

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  15. मर्मस्पर्शी लघु कथा पिता से दूरी या माँ से दूरी, किसी भी कारण से हो,चाहे भावात्मक दूरी हो, कोमल भावुक बाल मन अंदर तक आहत रहता है वो मुख से नहीं भी बोले पर अंतर्मुखी हो जाता है और किसी भी प्रक्रिया में उसके भाव कभी न कभी दिखने लगते हैं ।
    बहुत संवेदनशील ।

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    1. सही कहा आपने आदरणीय कुसुम दीदी कभी न कभी ख़ामोशी जरुर टूटती और तब बहता है भावों का सैलाब।
      सारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु तहे दिल से आभार।
      स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।

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  16. मर्मस्पर्शी लघुकथा

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    1. सादर आभार आदरणीय दीदी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु।
      सादर

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  17. मर्म को छूते हुए भाव ... स्वप्न के माध्यम से बहुत कुछ कहने का प्रयास ... हांफती हुई स्वप्न में जैसे ..

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    1. सादर आभार आदरणीय सर उत्साहवर्धन प्रतिक्रिया हेतु।
      आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

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