पहली बार किसी सैनिक को ससम्मान उसके घर छोड़ने गया था। घुटन अभी भी धड़कनों से रिस रही थी। सांसें स्वयं से द्वंद्व करतीं नज़र आईं। सफ़र में कुछ पल ठहरे थे एक जवान के घर।
वहीं से कुछ प्रश्न ज़ेहन में खटक गए।
अंतरद्वंद्व के चलते आख़िर बैठे-बैठे मैं पूछ ही बैठा-
"तुम्हारी पत्नी के हाथ में चूड़ियाँ नहीं थीं।
मैंने हृदय की व्याकुलता अपने साथी सैनिक के सामने परोसी।
उसने कहा -
"हालात ने छीन लीं।"
और वह मुस्कुराया।
"उसका चेहरा भावशून्य था।"
मैंने अपनी ही सांस गटकते हुए कहा।
उसने कहा -
"समय की धूप ने सोख लिए ।"
वह एकटक उसकी फोटो निहार रहा था।
"उसकी चाल में लचक, पैरों में पायल की खनक नहीं थी।"
मैंने उसका हृदय टटोलते हुए कहा।
उसने कहा -
"उसने किसी अपने को अर्पणकर दी।"
और उसकी आँखें नम हो गईं।
"उसकी मुस्कान दिखावा लगी शब्द लड़खड़ा रहे थे।"
मैंने शब्दों से गहरा वार किया।
उसने कहा -
"वह दिखावा मेरे लिए था, बिखरे शब्द ही बीनता हूँ मैं।"
उसने गर्दन पीछे सीट पर टिकाई और सीने की घुटन वहीं पी गया।
"तुम इतने ख़ुश कैसे रह सकते हो उसके साथ?"
मैंने उसके सब्र पर व्यंग्यपूर्ण तीक्ष्ण प्रहार किया।
उसने कहा -
" इसलिए कि वो आज भी मेरे इंतज़ार में जी रही है।"
उसने अपनी सांसों में एक राज़ दबा लिया देखते ही देखते उसने एक मासूम को अपनी वर्दी में छिपा लिया।
हृदस्पर्शी अत्यंत मार्मिक बहुत ही सुंदर लघुकथा ,कई बार कई जगह जिंदगी सवाल है जवाब नहीं ,घायल की गति घयल जाने ,अनिता बहुत अच्छा लिखती हो ,बस यू ही लिखती रहो
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सैनिक की मनोेदशा पर,
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर.
Deleteसादर
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 08 जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर मंच पर स्थान देने हेतु.
Deleteबहुत खूब
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय सर.
Deleteसादर नमस्कार,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा मंगलवार (09-06-2020) को
"राख में दबी हुई, हमारे दिल की आग है।।" (चर्चा अंक-3727) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है ।
…
"मीना भारद्वाज"
सादर आभार आदरणीय मीना दी चर्चामंच पर रचना को चयनित करने हेतु.
Deleteसादर
गज़ब!! गज़ब!!गज़ब!!
ReplyDeleteकोई पूछे सही मायने में लघुकथा कैसी होती है
तो निर्विवाद ऐसी होती है।
अनुपम अद्भुत,मर्म को झकझोरती ।
सार्थक लघुकथा।
साधुवाद।
सादर आभार आदरणीय कुसुम दीदी लघुकथा पर आपकी प्रतिक्रिया से हृदय अत्यंत हर्षित हुआ. मनोबल बढ़ाती समीक्षा हेतु सादर आभार.
Deleteओह!!!पाठक के मन में अन्तर्द्वन्द मचाती लाजवाब लघुकथा.... ।
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय सुधा दीदी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु.आपकी प्रतिक्रिया से मन अत्यंत हर्षित हुआ.
Deleteस्नेह आशीर्वाद बनाए रखे.
बढ़िया लघुकथा
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय
Deleteअप्रतिम लघु कथा.....।
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय दीदी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु.
Deleteसादर
वाह। वाह! बेहतरीन और अत्यंत मार्मिक लघुकथा ।
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय पल्लवी दीदी आपकी प्रतिक्रिया से लघुकथा और निख़र गईं. स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे.
Deleteसादर
मार्मिक और बेहतरीन लघुकथा । हृदयस्पर्शी....
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय मीना दीदी तहे दिल से आभार मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु. स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे.
Deleteसादर
हृदस्पर्शी अत्यंत मार्मिक बहुत ही सुंदर लघुकथा ,कई बार कई जगह जिंदगी सवाल है जवाब नहीं ,घायल की गति घयल जाने ,अनिता बहुत अच्छा लिखती हो ,बस यू ही लिखती रहो
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय ज्योति दीदी आपकी प्रतिक्रिया हमेशा मेरा हौसला बढ़ाती है. अत्यंत हर्ष हुआ आपकी सुंदर समीक्षा मिली. स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे.
Deleteसादर
अन्तःमन के अन्तर्द्वन्द्व पर आधारित बेहतरीन लघुकथा । शायद मैं इसे बेहद करीब से महसुस कर सकता हुँ । सादर धन्यवाद आपका इस प्रकार के लेख के लिए .
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु.
Deleteसादर
Bikhre shabd hi to beenta hun main. Waah.
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