"प्रकृति का प्रकोप प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है,भूकंप के हल्के झटकों के साथ-साथ मुआ पानी भी पाताल की गोद में जा बैठा है।"
छत की मुँडेर पर रखे खाली बर्तन के पास बैठी एक चिड़िया ने मायूसीभरे स्वर में कहा।
"हर किसी की जड़ें पीपल और बरगद-सी गहरी तो नहीं हो सकती ना...जो पाताल से पानी खींच सके।"
दूसरी चिड़िया की आवाज़ में व्याकुलता थी उसने आसमान को एक टक देखा उम्मीद और आग्रह दोनों आँखों की पलकों में छिपाते हुए कहा।
"धीरे-धीरे अब शेखावाटी में खेजड़ी का वृक्ष भी सूखने लगा है। धरती की तलहटी को छूते पानी से हम ही नहीं किसान भी व्याकुल हैं।"
पहली चिड़िया ने छज्जे की छाँव का आसरा लिया और दूसरी को आने का इशारा किया।
"शहर और गाँव में बावड़ीयाँ तो पहले ही सूख चुकीं हैं अब कुओं का पानी भी सूखने लगा है।"
छत के उपर से गुज़रते हुए कौवे ने खिसियाते हुए कहा।
"जीवन चुनौतियों से भरी गठरी को लादे रखता है वह कभी ज़मीन पर पैर ही नहीं रखता।"
दूसरी चिड़िया ने एक नज़र कौवे पर डालते हुए कहा।
"वहीं तपती रेत पर अब ऊँट के पाँव भी जलने लगे हैं, छाले उभर आए हैं पैरों में उसके,उसकी कूबड़ सिकुड़-सा गया है।"
दोनों चिड़ियों ने पास रखे गमले में पानी के लिए चोंच मारी पानी तो नहीं था परंतु मिट्टी गीली होने से वहीं बैठ गई।
"गड़रिये के पास छाँव के नाम पर कोरा आसमान है कुछ बादल के टुकड़े हैं जो कभी-कभार ही उसके साथ चलते हैं।"
पहली चिड़िया ने मन हल्का करते हुए कहा।
"पेड़-पौधे भी सूख चुके हैं। मरुस्थल पैर पसार रहा है। भेड़-बकरियाँ अब मिट्टी को सूँघती नज़र आतीं हैं। हर किसी का जीवन ठहरा-सा लगता है। नहीं ठहर रहा तो धरती की गोद में पानी और हुकुम का कभी आठ तो कभी शाम चार बजे बातें बनाना।"
एक तीसरी चिड़िया गमले में अपनी जगह बनाने का प्रयास करते हुए कहती है।
सादर आभार प्रिय ज्योति दीदी आपकी प्रतिक्रिया हमेशा मेरा मनोबल बढ़ाती है ब्लॉग पर आते रहे.हम बच्चों को कैसा भविष्य सौंप रहे है शायद हमें इसका अंदेशा भी नहीं है .आपको लघुकथा पसंद आई बहुत अच्छा लगा .
"रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून।" पानी के महत्त्व को त्रासदी के रूप में चित्रित करते हुए व्यंग्यात्मक लहज़े की लघुकथा में प्रतीकों का बेहतरीन प्रयोग हुआ है। पानी की कमी अब एक भयावहता में तब्दील हो चुकी है जिसे समय की आहट तो चीख़कर हमें बता रही है किंतु मानव का इस मुद्दे पर लापरवाही से भरा रबैया अत्यंत चिंताजनक है।
पानी की महत्ता पर सारगर्भित प्रतिक्रिया मुद्दा है भी विचारणीय.संभल गए बहुत अच्छा सब ठीक वैसे भी है. लघुकथा का मर्म स्पष्ट करती सराहनीय समीक्षा हेतु सादर आभार .आशीर्वाद बनाए रखे . सादर प्रणाम .
चिड़ियो के माध्यम से गरमी के प्रकोप को उकेरती हुई सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय सर 🙏
Deleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 2.7.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा -3750 पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
बहुत बहुत शुक्रिया सर मंच पर स्थान देने हेतु .
Deleteचिड़ियों की प्यारी कहानी, चिड़ियों के माध्यम से गर्मी की तकलीफों को उजागर करती हुई पोस्ट ।
ReplyDeleteसादर आभार प्रिय ज्योति दीदी आपकी प्रतिक्रिया हमेशा मेरा मनोबल बढ़ाती है ब्लॉग पर आते रहे.हम बच्चों को कैसा भविष्य सौंप रहे है शायद हमें इसका अंदेशा भी नहीं है .आपको लघुकथा पसंद आई बहुत अच्छा लगा .
Deleteजल ही जीवन है, इसका सरंक्षण आज की सबसे बड़ी जरूरतों में से एक है
ReplyDeleteसही कहा आदरणीय अनीता दीदी अब जल एक विकट समस्याओं में से एक है.हमें अमल अवश्य करना चाहिए .
Deleteब्लॉग पर आते रहे .
सादर प्रणाम
"रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून।"
ReplyDeleteपानी के महत्त्व को त्रासदी के रूप में चित्रित करते हुए व्यंग्यात्मक लहज़े की लघुकथा में प्रतीकों का बेहतरीन प्रयोग हुआ है। पानी की कमी अब एक भयावहता में तब्दील हो चुकी है जिसे समय की आहट तो चीख़कर हमें बता रही है किंतु मानव का इस मुद्दे पर लापरवाही से भरा रबैया अत्यंत चिंताजनक है।
सुंदर उद्देश्यपूर्ण लघुकथा।
पानी की महत्ता पर सारगर्भित प्रतिक्रिया मुद्दा है भी विचारणीय.संभल गए बहुत अच्छा सब ठीक वैसे भी है.
Deleteलघुकथा का मर्म स्पष्ट करती सराहनीय समीक्षा हेतु सादर आभार .आशीर्वाद बनाए रखे .
सादर प्रणाम .