Sunday, 5 April 2020
...और वह निकल गयी !
"रवि! तुहें पता है, जब तुम आठ-नौ महीने के थे; मुझे ठीक से तुम्हें गोद में उठाना भी नहीं आता था तब हम भोपाल में थे। हम रात को किसी पार्टी से आ रहे थे, यही कुछ दस-ग्यारह बजे थे। तुम्हारे पापा ड्राइविंग कर रहे थे सामने अचानक नील गाय आ गयी और ब्रेक लगाने से गाड़ी का बैलेंस बिगड़ गया। उस वक़्त उन लोगों ने जिस अपनत्व से हमारी मदद की थी, मैं भुला नहीं पा रही हूँ; हमें भी ऐसे ही लोगों की मदद करनी चाहिए।"
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और वह निकल गयी,
लघु कथा

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स्वप्न नहीं! भविष्य था
स्वप्न नहीं! भविष्य वर्तमान की आँखों में तैर रहा था और चाँद दौड़ रहा था। ”हाँ! चाँद इधर-उधर दौड़ ही रहा था!! तारे ठह...
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बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteहम सभी देशवासी मिल कर प्रधानमन्त्री की आवाज पर
अपने घर के द्वार पर 9 मिनट तक एक दीप प्रज्वलित जरूर करें।
सादर आभार आदरणीय सर
Deleteसादर प्रणाम
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (06 -04-2020) को 'इन दिनों सपने नहीं आते' (चर्चा अंक-3663) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
*****
रवीन्द्र सिंह यादव
सादर आभार आदरणीय सर मेरी लघुकथा को स्थान देने हेतु.
Deleteसादर
बहुत सुंदर पोस्ट।
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय
Deleteसादर
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय
Deleteसादर
समय के साथ हमारी संवेदनाएं मरती जा रही हैं. सुंदर लघुकथा.
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय सर
Deleteसादर प्रणाम
बहुत ही सुंदर
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सर
Deleteसादर
बहुत ही अच्छी कहानी प्रिय अनीता जी ,आज के दौर का कड़वा सच हैं यह
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीया दीदी 🙏
Deleteबहुत ही सुन्दर और हृदयस्पर्शी कहानी ....सच में संवेदना मर रही है आजकल।
ReplyDeleteलोग मदद करने को मुसीबत में पड़ना कहते हैं।
सादर आभार आदरणीया दीदी उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु.
Deleteसादर
समाज के बदलते चरित्र पर तीखा प्रहार करती और नवोदित पीढ़ी के व्यवहार को बख़ूबी चित्रित करती लघुकथा एक साथ कई सवाल छोड़ जाती है पाठक के मन-मस्तिष्क पर। लघुकथा का कथानक वर्तमान परिवेश से जुड़े अनेक पहलुओं को प्रभावशाली ढंग से गढ़ता है। प्रस्तुत लघुकथा में शिल्पगत विशिष्टाएँ दृष्टव हैं। स्थानीय शब्दावली संवादों को रोचक बनाती है। लघुकथा के मानदंडों को पूरा करने के लिये आवश्यक है अनावश्यक विस्तार से बचा जाय और पात्रों का चरित्र न बदले, साथ ही सार्थक संदेश का संप्रेषण करती हुई पाठक के प्राणों को स्पर्श कर ले।
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय सर सुंदर सारगर्भित समीक्षा हेतु.
Deleteअनावश्यक विस्तार से बचा जाय और पात्रों का चरित्र न बदले, साथ ही सार्थक संदेश का संप्रेषण हो.. सुंदर सादर आभार मार्गदर्शन हेतु.
सादर
बहुत अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय सर उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु.
Deleteआशीर्वाद बनाये रखे.
सादर