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Thursday 30 April 2020

बेटी की माँ


डॉक्टर साहिबा ने फोन रखते हुए ज्योति को शीघ्र अस्पताल पहुँचने की सलाह दी। 

 संयोगवश उस समय घर पर कोई नहीं था जब अचानक ज्योति को लेबर पेन होने लगा। 

उसने पति को सूचित किया जो किसी कार्य से पास के शहर में गया था। 

"मुझे पहुँचने में एक-डेढ़ घंटा लगेगा। 

माँ के साथ चली जाओ।"

ज्योति के पति ने कहा। 

"माँ- पिताजी मंदिर गये हैं, फोन घर पर ही छोड़ गए हैं।" 

ज्योति ने उत्तर दिया। 

अच्छा ठीक है निधि के साथ जाती हूँ अस्पताल। 

कुछ समय अंतराल पर ज्योति के मम्मी-पापा और सास-ससुर भी पहुँच जाते हैं। 

उन्हें देखकर ज्योति  के मन में बहुत संतोष हुआ। 

अपनों का साथ क्या होता है उस दिन ज्योति ने जाना। 

तभी ज्योति को लेबर रुम में ले जाया जाता है। 

वहीं बाहर सभी इंतज़ार कर रहे थे नन्हें मेहमान का परंतु यह क्या ज्योति की सास बार-बार भगवान का सुमिरण कर रही थी। 

यह देखकर निधि को बहुत अच्छा लगा। 

इतना प्रेम वह भी बहू से कभी-कभी ही देखने को मिलता है। 

बारिश की हल्की बूँदा-बाँदी से शाम का मौसम कुछ ठंडा हो गया। शायद इसी से उनके हाथ-पैर काँप रहे थे। 

"आप ठीक हैं आंटीजी?"

निधि ने ज्योति की सास के कँधे पर हाथ रखते हुए पूछा। 

"हाँ बेटा!"

उन्होंने बड़ी ही आत्मीयता से मुस्कुराते हुए कहा। 

"भगवान बीनणी ने सुख-शांति से दो कुढ़ा कर दे और के चाहे।"

उसांस के साथ उन्होंने फिर शब्दों को दोहराया और कुछ बड़बड़ाते हुए टहलने लगीं।

तभी लेबर रूम से बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर गोद में नवजात बच्चे को लेकर निकली। 

"बधाई हो! नन्ही परी पधारी है आप के आँगन में।"

मुस्कुराते हुए उन्होंने सभी को बधाई दी। 

"फोटो क्लिक बिल्कुल भी न करें।"

डॉक्टर ने ज्योति के पापा की ओर इशारा किया। 

हल्की-फुल्की फ़ॉर्मल्टी के बाद बच्ची को अंदर ले जाया गया।"

"मैंने कहा था आपको, मेरी कौन सुने घर माही,अब देखो छोरी ने मुँह काढ़ लियो न,म्हारे तो छोरे का भाग ही फूटगा।"

ज्योति की सास एकदम अपने पति पर झुँझला उठी। 

" देखो समधन नातिन न माथे मत मारो, राम के घरा जाणों है,थारे भी तीन-तीन छोरियाँ हैं ।"

ज्योति की माँ का सब्र टूट गया, उन्होंने भी तपाक से प्रति उत्तर दिया। 

वे दोनों समधन वहीं आपस में वाद-विवाद में उलझ गयीं।

किसी ने एक बार भी नहीं पूछा ज्योति कैसी है?

निधि ज्योति से मिलने वार्ड की तरफ़ क़दम बढ़ाती है परंतु न जाने क्यों उसके क़दम नहीं बढ़ रहे थे वह एक कश्मकश में उलझी थी वह और पता ही नहीं चला कब ज्योति के बेड के पास पहुँच गयी। 

"माँ जी ख़ुश हैं न?"

ज्योति ने बेचैनी से पूछा। 

"हाँ बहुत ख़ुश हैं।"

"क्यों "

निधि ने बेपरवाही से कहा। 

"उन्होंने पूजा रखी थी,मन्नतों में मांगा करती थीं घर का वारिस।"

अंतस में कुछ बिखरने की आवाज़ से ज्योति सहम-सी गयी। 

बेटी के लिए अब आँचल छोटा लगने लगा...  

©अनीता सैनी  'दीप्ति'

10 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 30 एप्रिल 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. सादर आभार आदरणीय सर संध्या दैनिक में मेरी लघुकथा को स्थान देने हेतु.
      सादर

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  2. सादर नमस्कार,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (01-05-2020) को "तरस रहा है मन फूलों की नई गंध पाने को " (चर्चा अंक-3688) पर भी होगी। आप भी
    सादर आमंत्रित है ।

    "मीना भारद्वाज"

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    1. सादर आभार आदरणीया मीना दीदी चर्चामंच पर मेरी लघुकथा को स्थान देने हेतु.
      सादर

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  3. बहुत सुन्दर और भावप्रवण रचना।

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    1. सादर आभार आदरणीय सर उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु.
      सादर

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  4. कहने को हम आधुनिक समाज के प्रतिनिधि हैं किंतु पुरातन संस्कार हमारी ज़रा-सी चमड़ी खुरचकर देखे जा सकते हैं। लड़का-लड़की में भेदभाव करते समाज के दकियानूसी विचार पर आज भी लेबर रूम के बाहर देखे-सुने जा सकते हैं। समाज की बड़ी सड़ी-गली सोच को बख़ूबी प्रस्तुत करती उद्देश्यपूर्ण लघुकथा।लघुकथा में कथानक की स्पष्टता और संवादों में स्थानीय मुहावरों के प्रयोग की रोचकता ध्यानाकर्षक है।



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    1. सादर आभार आदरणीय सर सारगर्भित सकारात्मक समीक्षा हेतु. आशीर्वाद बनाये रखे.
      सादर

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  5. बेटा बेटी का ये भेदभाव जाने कब खत्म होगा समाज से....जाने कितनी परीक्षाओं में खरा उतरना होगा बेटी को...बहुत सुन्दर लघुकथा...
    आँचलिक भाषा से कथानक और भी जीवन्त और सटीक बन पड़ा है।

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    1. सादर आभार आदरणीया दीदी सुंदर सकारात्मक समीक्षा हेतु. स्नेह आशीर्वाद बनाये रखे.
      सादर

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