बहुत शानदार लघु कथा। मेरे ख्याल से पोशाक से संस्कारों का कोई लेना-देना नहीं पर हाँ लेना -देना है पोशाक पहनने वाले से ।संस्कारी व्यक्ति चाहता है कि उसके कारण किसी का दिल न दुखे।इसलिए सुविधा हो या ना हो बड़े बुजुर्गों का मान रखने के लिए पोशाक भी उनकी इच्छानुसार पहनता है। बहुत ही लाजवाब लघुकथा लिखी आपने अनीता जी! बहुत बहुत बधाई आपको।
सुंदर लघु कथा अनीता जी ,पोशाक से ही संस्कार की पहचान होती हैं ,सादर
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीया कामिनी दीदी 🙏
Deleteसादर
वाह!सखी ,सुंदर लघुकथा । लोगों की मानसिकता है ये कि वे पोशाक से संस्कारों को पहचानने की कोशिश करते है ,मेरे ख्याल से अब ये नजरिया बदलना होगा ।
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीया शुभा दीदी 🙏
Deleteसादर प्रणाम
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय सर 🙏
Deleteसादर प्रणाम
बहुत शानदार लघु कथा। मेरे ख्याल से पोशाक से संस्कारों का कोई लेना-देना नहीं पर हाँ लेना -देना है पोशाक पहनने वाले से ।संस्कारी व्यक्ति चाहता है कि उसके कारण किसी का दिल न दुखे।इसलिए सुविधा हो या ना हो बड़े बुजुर्गों का मान रखने के लिए पोशाक भी उनकी इच्छानुसार पहनता है।
ReplyDeleteबहुत ही लाजवाब लघुकथा लिखी आपने अनीता जी! बहुत बहुत बधाई आपको।
सादर आभार आदरणीय सुधा दीदी सुंदर सारगर्भित समीक्षा हेतु.
Deleteसादर प्रणाम