नागरिकता संशोधन क़ानून संसद से पास क्या हुआ. देशभर में इसका विरोध किया जाने लगा विरोध की वजह इस क़ानून में पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में धार्मिक रूप से प्रताड़ित हो रहे अल्पसंख्यकों को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान है. इन देशों से आये ऐसे अल्पसंख्यक शरणार्थी जो दिसंबर 2014 तक भारत में शरण के लिये आये हैं उन्हें भारत का नागरिक बना दिया जाय.इसमें वहाँ के अल्पसंख्यक हिन्दू, सिक्ख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई शामिल हैं. प्रावधान में इस्लाम का ज़िक्र न करने पर भारत में विरोध के स्वर उभर आये हैं. विरोध केवल मुस्लिम नहीं कर रहे हैं बल्कि इनके साथ धर्मनिरपेक्ष विचार के लोग भी शामिल हैं.
लोकतान्त्रिक देश में सरकार की नीतियों और पक्षपाती क़ानून का विरोध करना जनता का अधिकार है लेकिन यह हिंसक हो जाय तो इसकी निंदा भी की जानी चाहिये . क़ानून अपने हाथ में लेना, उसकी अवहेलना करना, राष्ट्रीय सम्पत्ति को क्षति पहुँचाना, सुरक्षा बलों पर हमला करना कैसे जाएज़ ठहराया जा सकता है?
चूंकि भारत सरकार ने घोषणा की है कि इस क़ानून के बाद राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर यानी एनआरसी क़ानून लाया जायेगा. लोगों की आशंकाओं का सरकार ने जवाब दिया है फिर भी लोग संतुष्ट नहीं हैं और सीएए क़ानून को सरकार से लागू न करने की मांग कर रहे हैं आख़िर क्यों ? आपत्ति कहाँ है ?अगर कानून देश हित में है तो क्या हमें अपनी सरकार का साथ नहीं देना चाहिए।सरकारें अपने बोट बैंक के चलते ऐसे क़दम उठती भी बहुत कम है. क्या हमें अपने परिवारों की रक्षा के लिये कोई भी क़दम नहीं उठाना चाहिये. हमें जागरुक होना होगा राजनेता उस मैगी के ऐड की तरह है कभी कहेंगे यह देश हित में नहीं है और दूसरे ही पल कहेंगे इसे लागु होना चाहिये. अब समझने की बात यह है कि वह ऐसा क्यों कर रहे है. देश की उन्नति और उज्ज्वल भविष्य के लिये सार्थक क़दम समय-समय पर उठाने चाहिये. तकलीफ़ होती है उन ग़रीब और कमजोर तबके के लोगों को परेशान होते देख. लेकिन क्या हम कुछ परेशानी अपने देश के लिये नहीं झेल सकते वैसे भी हम ता- उम्र परेशान ही रहते है.समय और विचारों की सार्थकता को समझते हुये भविष्य में सार्थक क़दम उठाये, राजनितिक संगठनों की बयान बाजी को देखते हुये हमें स्वय के विवेक से देश हित में प्रयास रत होना चाहिए।जो सही है उसे डर क्या और जो गलत है उसे ज़िद क्यों।
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हम लोगों से शांति की अपील करते हैं कि विरोध में रैलियों का आयोजन करने वाले राष्ट्रीय संपत्ति का नुकसान होने से बचाएँ और हिंसक आंदोलन को हवा न दें।
हम लोगों से शांति की अपील करते हैं कि विरोध में रैलियों का आयोजन करने वाले राष्ट्रीय संपत्ति का नुकसान होने से बचाएँ और हिंसक आंदोलन को हवा न दें।
अनीता सैनी
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