बिहार के पुत्र, दुनिया के जाने माने महान गणितज्ञ,होनहार,
प्रतिभा के धनी,बचपन से ही शांत व गंभीर स्वभाव के धनी,विश्व गणित कांग्रेस अमेरिका में भारत का सर ऊंचा उठाने वाले,एक सामान्य परिवार में जन्म हुआ था आपका
परन्तु आप सदैव ही न जाने क्यों सरकार की तरफ से उपेक्षित होते रहे |
जब आप पटना विज्ञान महाविद्यालय में पढ़ते थे
आपकी मुलाकात अमेरिका से पटना आये प्रोफेसर कैली से हुई आपकी प्रतिभा से प्रभावित होकर प्रोफेसर कैली ने आपको बरकली आकर शोध करने का निमंत्रण दिया।१९६३ में आप कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय में शोध के लिये गये। १९६९ में आपने कैलीफोर्निया विश्वविघालय में पीएच.डी. की डिग्री प्राप्त की। चक्रीय सदिश समष्टि सिद्धांत पर किये गये आपके शोध कार्य ने आपको भारत और विश्व में प्रसिद्ध कर दिया।
आपने वाशिंगटन में गणित प्रोफेसर के पद पर भी काम किया।
१९७१ में आप भारत वापस लौट आये। आपने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर और भारतीय सांख्यकीय संस्थान कोलकाता में काम किया।१९७३ में आपका विवाह वन्दना रानी के साथ हुआ। १९७४ से आपको मानसिक दौरे आने लगे। आपका राँची में इलाज हुआ। लम्बे समय तक आप मानसिक पीड़ा के साथ गाएब रहे फिर एकाएक आप हमें मिल गये। आपको बिहार सरकार ने इलाज के लिये बेंगलुरू भेजा था लेकिन बाद में बीमारी का ख़र्च देना सरकार ने बंद कर दिया। इससे बड़ी सरकारी निर्ममता की मिशाल ढूंढ़ना मेरे लिये सायद बहुत मुश्किल है। जनदबाव में एक बार फिर से बिहार सरकार ने आपके इलाज के लिये पहल की थी। विधान परिषद की आश्वासन समिति ने १२ फ़रवरी २००९ को पटना में हुई अपनी बैठक में आप को इलाज के लिये दिल्ली भेजने का निर्णय लिया।
समिति के फैसले के आलोक में भोजपुर जिला प्रशासन ने आपको १२ अप्रैल २००९ को दिल्ली भेजा।आपके साथ दो डॉक्टर भी भेजे गये थे। दिल्ली के मेंटल अस्पताल में जांच के बाद डॉक्टरों के परामर्श पर आपके लिये आगे के ख़र्च का बंदोबस्त किया गया।
स्वास्थ्य विभाग का कहना था कि दिल्ली में परामर्श
के बाद यदि ज़रूरत पड़ी तो उन्हें विदेश भी ले जाया जा सकता है।
पिछले दिनों आरा में आपकी आंखों में मोतियाबिन्द का सफल ऑपरेशन हुआ था। कई संस्थाओं ने आपको गोद लेने की पेशकश की थी लेकिन आपकी माता जी को यह मंज़ूर नहीं था।
आज १४ नवंबर २०१९ को देश की महान प्रतिभा,
बिहार की विभूति, महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह का निधन हो गया है। आप अपने परिजनों के संग पटना के कुल्हरिया कॉपलेक्स में रहते थे। बताया जा रहा है कि आज आपकी तबियत ख़राब होने लगी, जिसके बाद तत्काल परिजन पटना मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल लेकर गये।जहां डॉक्टरों ने आपको मृत घोषित कर दिया ।सोशल मीडिया पर समाचार मिले हैं कि आपके शव को घर ले जाने के लिये मेडिकल कॉलेज प्रशासन द्वारा एंबुलेंस भी उपलब्ध नहीं करायी गयी। एक अभागे महान वैज्ञानिक के शव को अंत में घोर सरकारी उपेक्षा और नकारेपन का शिकार होना पड़ा।
अफ़सोस!
हमारी विनम्र श्रद्धांजलि और श्रद्धा सुमन अर्पित हैं।
जी नमस्ते, आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (15-11-2019 ) को "नौनिहाल कहाँ खो रहे हैं" (चर्चा अंक- 3520) पर भी होगी। चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है। जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिये जाये। आप भी सादर आमंत्रित हैं। ***** -अनीता लागुरी 'अनु'
प्रिय अनिता, आदरणीय वशिष्ठ जी पर ये लेख पढ़कर बहुत सी बातें जानी उनके बारे में। उनके पार्थिव शरीर को टीवी पर देखा, तो बहुत पीड़ा हुई। जिस व्यक्ति को इक्कीस तोपों के साथ संसार से विदा होना था, वह लावारिस और गुमनाम मर गया। सच कहूँ तो वे मुक्त हुए इस निष्ठुर जगत से । उनको अश्रुपूरित नमन् 🙏🙏🙏
षड्यंत्र ही था विधना का , तुम जो जीवनरण में पस्त हुये कर्म - साधना हुई निष्फल लक्ष्य सारे ध्वस्त हुये!
ना सखा स्नेही केशव सा मिला ना कोई शिष्य अर्जुन जो अदृश्य शाप मिटा देता ना पाया किसी सावित्री का समर्पण सूरज बन दमके कुछ पल । फिर धुंधले तारे से अस्त हुये
कौन दर्द तुम्हारा जान सका बंशी की विकल सी धुन मे ? सुलझाते अनगिन प्रश्न भटके सघन वेदना के वन में , कौन पीड़ प्याप गयी भीतर जग से जो यूँ विरक्त हुये ?
जा मिलो विराट शून्य में अब जीवन छल से बाहर निकल निष्ठुर जग के सहे सितम बहुत हुई शाप ढोते आत्मा बोझिल विदा ! कोटि नमन पथिक ! तुम्हें मोक्ष मिला तुम मुक्त हुए !!
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय दी जी. इतनी सुन्दर रचना से मेरे ब्लॉग का मान बढ़ाने के लिये. बार-बार आपकी रचना पढ़ने का मन होता है आदरणीय वशिष्ठ जी को समर्पित एक रचना लिखने का मन मेरा भी बहुत था परन्तु सायद मैं चुक गयी. आपके इस स्नेह से बहुत ही हर्षित हूँ. सस्नेह आभार प्रिय रेणु दी जी सादर
बहुत बहुत धन्यवाद अनीता जी
ReplyDeleteडाक्टर वशिष्ठ नारायण सिंह। ke baare me इतनी विस्तृत जानकारी हम सब से शेयर करने के लिए
आभार और शुभकामनाएं
बहुत बहुत आभार आदरणीया सखी ज़ोया जी
Deleteआप से मिले स्नेह की हमेशा आभारी रहूँगी.
सादर
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (15-11-2019 ) को "नौनिहाल कहाँ खो रहे हैं" (चर्चा अंक- 3520) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिये जाये।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
*****
-अनीता लागुरी 'अनु'
बहुत बहुत शुक्रिया प्रिय अनु
Deleteसादर
डाक्टर वशिष्ठ नारायण सिंह जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर बहुत सुन्दर आलेख । विनम्र श्रद्धांजलि🙏
ReplyDeleteसस्नेह आभार आदरणीया मीना दीदी जी.आपका सानिध्य हमेशा बना रहे.
Deleteसादर
प्रिय अनिता, आदरणीय वशिष्ठ जी पर ये लेख पढ़कर बहुत सी बातें जानी उनके बारे में। उनके पार्थिव शरीर को टीवी पर देखा, तो बहुत पीड़ा हुई। जिस व्यक्ति को इक्कीस तोपों के साथ संसार से विदा होना था, वह लावारिस और गुमनाम मर गया। सच कहूँ तो वे मुक्त हुए इस निष्ठुर जगत से । उनको अश्रुपूरित नमन् 🙏🙏🙏
ReplyDeleteआदरणीया रेणु दीदी जी सादर आभार आपका
Deleteसुन्दर समीक्षा ने मेरा मनोबल बढाया. यही कहुंगी एक हीरा हाथों से छूट गया. जिसको किसी की नज़र परख न पायी.
सादर
ReplyDeleteकोटि नमन दिवंगत आत्मा को 🙏🙏🙏🙏
यही कहूंगी --
षड्यंत्र ही था विधना का ,
तुम जो जीवनरण में पस्त हुये
कर्म - साधना हुई निष्फल
लक्ष्य सारे ध्वस्त हुये!
ना सखा स्नेही केशव सा
मिला ना कोई शिष्य अर्जुन
जो अदृश्य शाप मिटा देता
ना पाया किसी सावित्री का समर्पण
सूरज बन दमके कुछ पल ।
फिर धुंधले तारे से अस्त हुये
कौन दर्द तुम्हारा जान सका
बंशी की विकल सी धुन मे ?
सुलझाते अनगिन प्रश्न भटके
सघन वेदना के वन में ,
कौन पीड़ प्याप गयी भीतर
जग से जो यूँ विरक्त हुये ?
जा मिलो विराट शून्य में अब
जीवन छल से बाहर निकल
निष्ठुर जग के सहे सितम बहुत
हुई शाप ढोते आत्मा बोझिल
विदा ! कोटि नमन पथिक !
तुम्हें मोक्ष मिला तुम मुक्त हुए !!
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय दी जी. इतनी सुन्दर रचना से मेरे ब्लॉग का मान बढ़ाने के लिये. बार-बार आपकी रचना पढ़ने का मन होता है आदरणीय वशिष्ठ जी को समर्पित एक रचना लिखने का मन मेरा भी बहुत था परन्तु सायद मैं चुक गयी. आपके इस स्नेह से बहुत ही हर्षित हूँ.
Deleteसस्नेह आभार प्रिय रेणु दी जी
सादर
बहुत सुन्दर लेख अनीता |
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका
Deleteसादर