संयोग ही था कि आज दशहरे के अवसर पर मैंने उसे शुभकामनाएँ देनी चाहीं और वह मेरा मुँह ताकती रही | मन कुछ विचलित-सा हुआ कि कहीं कुछ ग़लत तो नहीं कह दिया | उसने हलकी मुस्कान के साथ कहा-
"हम गाँव से पहली बार बाहर निकले हैं | कुछ ही महीने हुए हैं जयपुर आये हुए, हमारे वहाँ इस तरह रावण दहन नहीं करते जिस तरह यहाँ जयपुर में किया जाता है" |
मेरी उत्सुकता और बढ़ गयी तब मैंने कहा-
"क्यों ?"
उसने कहा-
"वह दामाद था हमारा और दामाद कैसा भी हो, दमाद ही होता है इसीलिए हमारे मध्य प्रदेश में कई स्थान ऐसे हैं जहाँ रावण का दहन नहीं होता है बल्कि उसकी पूजा की जाती है। हमारे मंदसौर में तो लोग रावण को अपने क्षेत्र का दामाद मानते हुए उसकी पूजा करते हैं।वहाँ की बहुएँ रावण की प्रतिमा के सामने घूंघट डालकर जाती हैं क्योंकि मंदसौर ज़िले को रावण का ससुराल माना जाता है यानी उसकी पत्नी मंदोदरी का मायका। पूर्व में इस ज़िले को दशपुर के नाम से जाना जाता था । हमारे खानपुरा क्षेत्र में रुण्डी नामक स्थान पर रावण की प्रतिमा स्थापित है, जिसके दस सर हैं।"
उसने आगे कहा-
"दशहरा के दिन यहाँ के नामदेव समाज के लोग प्रतिमा के समक्ष उपस्थित होकर पूजा-अर्चना करते हैं। उसके बाद राम और रावण की सेनाएँ निकलती हैं। रावण के वध से पहले लोग रावण के समक्ष खड़े होकर क्षमा-याचना करते हैं।"
वे कहते हैं -
“आपने सीता का हरण किया था इसलिए राम की सेना आपका वध करने आयी है ”
उसके बाद प्रतिमा स्थल पर अंधेरा छा जाता है और फिर उजाला होते ही राम की सेना उत्सव मनाने लगती है |
उसने और आगे कहा -
"रावण हमारे मंदसौर का दामाद था इसलिए हम महिलाएँ जब प्रतिमा के सामने पहुंचते ही घूंघट डाल लेती हैं। दामाद कैसा भी हो, उसका ससुराल में तो सम्मान होता ही है मगर इसके ऐतिहासिक और धार्मिक ग्रंथों में उदाहरण कहीं नहीं मिलते। सब कुछ परंपराओं, दंतकथाओं और किंवदंतियों के अनुसार चलता आ रहा है।”
हमारा भी इन परम्पराओं से एक रिश्ता-सा जुड़ गया है जिस तरह यहाँ ख़ुशियाँ मनायी जाती हैं वैसे हमारे गाँव में नहीं मनाई जाती, वह ख़ुश थी या दुखी मैं कुछ समझ नहीं पायी परन्तु कुछ था जो अंदर ही अंदर टूट रहा था परम्परा के नाम पर कुछ अवधारणा के नाम, पर कुछ उन शब्दों के नाम पर जो समाज को तय दिशा दिखाने के लिये लिखे गये हैं | कल्पनाओं से उपजे हैं या यथार्थ की भूमि से उपजे हैं या स्वार्थवश इंसान के अंतरमन से. ...
©अनीता सैनी
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (09-10-2019) को "विजय का पर्व" (चर्चा अंक- 3483) पर भी होगी। --
ReplyDeleteसूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--विजयादशमी कीहार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सहृदय आभार आदरणीय चर्चामंच पर मुझे स्थान देने हेतु
Deleteप्रणाम
सादर
बहुत सुन्दर सृजन अनीता जी ।
ReplyDeleteसस्नेह आभार प्रिय मीना बहन
Deleteसादर
बहुत रोचक जानकारी अनीता जी.
ReplyDeleteहमारे ग्रेटर नॉएडा में बिसरख एक कस्बा है. यह मान्यता है कि रावण वहीं का रहने वाला था. बिसरख में दशहरे के अवसर पर रावण-वध नहीं होता है और वहां रावण का एक मन्दिर भी है.
तहे दिल से आभार आदरणीय सर सुन्दर समीक्षा और एक और रोचक जानकारी साजा करने हेतु
Deleteप्रणाम सर
सादर
रावण हमारे मंदसौर का दामाद था इसलिए हम महिलाएँ जब प्रतिमा के सामने पहुंचते ही घूंघट डाल लेती हैं। दामाद कैसा भी हो, उसका ससुराल में तो सम्मान होता ही है
ReplyDeleteसुन्दर सृजन अनीता जी ।
सस्नेह आभार प्रिय ज़ोया बहना सुन्दर समीक्षा हेतु
Deleteसादर
बहुत सुंदर और सार्थक सृजन 👌
ReplyDeleteसस्नेह आभार आदरणीया अनुराधा दीदी जी
Deleteसादर
प्रिय अनिता, तुम्हारे इस सुंदर लेख पर मैं ना लिखा पायी थी उस समय,मेरी प्रतिक्रिया लंबित थी। मुझे बहुत अच्छा लगा और रावण की ससुराल के बारे में रोचक बातें जानी। सचमुच दामाद को बहुत ऊँचा स्थान मिला है भारतीय संस्कृति में। प्रातः स्मरणीय पंच देवियों में एक मंदोदरी , मंदसौर की बेटी है, ये मंदसौर के लिए गर्व की बात है । रोचक लेख के लिए हार्दिक शुभकामनायें। 💐💐💐💐🌹🌹🌹
ReplyDeleteसादर नमन आदरणीया दीदी जी मेरे छोटे से प्रयास को आपने से नवाज़ा. वसे तो आप का स्नेह और सानिध्य हमेशा ही मुझे मिलता रहा है. परन्तु यह लेख लिंक से थोड़ा अलग था. आपकी सराहना से सँबल मिला.
Deleteसादर